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________________ ११० साहारणकविरया किर तुम्हे रायहाणिहिं पयट्ट ताकेत्तिय तर्हि वाहेहि वट्ट | १० देवस्स भिच्चु एक्कु वि अहं ति एत्थेव समाणमि विग्गहं ति । जाणेवि सेणावs आवइति भड - मज्झ पढम संपत्त लीहु भणियं च देव आस देहु देवta free froसिउ ममं तु ५ कुमरेण वि चितिउ जुत्तु एउ तो तस्स वि दिष्णउ कुसुम-दामु निय-बल-समेउ कय-कलयलस्स कुमरो विसरि विज्जाहरेहिं एत्यंतरि तहिं सुर सिद्ध जक्ख १० तर्हि वीर - वरण-कय-मच्छराउ आइउ नाहिं अगर एरिस जं कुमरें कलिउ । तं वग्ग - रयणु हत्थह मुयइ बलु सयलु वि मिलिउ ||२४|| [२५] Jain Education International [ ७. २६ एत्थ वि अहं पि सेणावइति । सयमेव समुद्वि चंडसीहु | मज्झं चिय कुणह पसाउ एहु । दूरद्विय विज्जाहर नियंतु । एसो च्चिय सेणावर अजेउ । गिहिउ करेवि तेण विपणामु । धाविउ सम्मुह दुम्मुह-बलस्स । ठिउ गयणि विमाणेहिं सुंदरेहिं । संपत्त समर - पेक्खग असंख | संपत्त बहुत्तउ अच्छराउ । उच्छलियउ तूरावु बहलु एत्यंतरे कय- कलयलई । रोसेण को वि अभिट्टाई चंडसीह-दुम्मुह-बलई ||२५|| [२६] तो वरिस वरिस एरिस भणति पलए व्व घणेहिं निरंतरे हिं खग्गहार निवडंति केंव गय गएहिं तुरंग तुरंगमेहिं ५ तहिं एक्कमेक्कु हक्कारयंति पहराह विज्जाहर पडंति कुंरगेड के वि विभिन्न- देह अन्नोन्न केस - कड्ढणु करेवि [२४] ९ ला ० तो केत्तिय, पु० वाह १२. ला० हत्थ मुयइ, पु० वि लिउ । [२५] १. ला० जाणवि २. ला० संपत्ति ३. पु० आदेसु, ला० मज्झविय ८. ला० ठिओ गयणे १०. ला० -मच्छराओ ११. पु० उच्छलिउ [२६] २. ला०, पलय व्व घणेहि पु० से छाइउ ३. ला० केव... काले... जेव ४. ला० यहिं ७. पु० जुज्झहिं तर्हि वि भव० सर-वरि निरंतर भड मुयंति । संच्छाइ अंबरतल सरेहिं । उपाय- कालि निरघाय जैव । जुज्झति सु सुहिं समेहिं । अवरोप्परु कुल संभालयंति । उद्वेवि पुणो व समावति । जुज्झंति तर्हेव अवगणिय- वेह | गय पहरण छुरियहिं लग्ग के वि । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001874
Book TitleVilasvaikaha
Original Sutra AuthorSadharan
AuthorR M Shah
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1977
Total Pages310
LanguagePrakrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size17 MB
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