SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 131
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ५४ साहारणकइविरइया [४. १७ उचिया तुहुं दाणह एरिसस्स तेण य न ताव तावस-वयस्स। सा पभणइ जं तुहं आणवेहि जं मई कायव्वउं तं कहेहि । ५ तो तावस-कन्न-विहाणएण तहिं को वि कालु वोलिउ सुहेण । अह अन्न-कालि कुलबइ-भयंतु गउ धम्म-भाइ-दसण-निमित्तु । सो जाव पत्तु सिरि-पव्ययम्मि एत्तहि कुमार अन्नहि दिणम्मि । गय एह कुसुम-समिहा-निमित्तु आगमणह अवसरु तीए वित्तु । अह काए वि वेलए वोलियाए अ वसेरिहिं महुं जोयंतियाए । १० एत्थंतरि पिट्टि पलोयमाणि अविरल-नयणंसुय पुंछमाणि । सेय-जल-पवल-संसित्त-काय नं खण महणुट्ठिय लच्छि आय । अच्चंत-अरइ-परिगय-मणम्मि संपत्त एह आसम-पयम्मि । सा पेच्छेविणु मई भणिय राय-पुत्ति किं रुयहि अवारिउ । तीए वि पिउ अज्ज मई भयवइ निय-बंधुयणह सुमरिउ ॥१६॥ मई भणिय पुत्ति मा तुहुँ रुवेहि कइय वि दिवसई परिवालएहि । कुलवइ भयंतु जा एत्थ एइ ता सो तई निय-बंघवहं नेइ । पडिवन्नु विलासवईए एउ तदिवसह न य पूएइ देउ । न य विहइ अइहि-बहुमाणु किं पि न करेइ कह वि कुसुमोच्चयं पि । ५ न य पणमइ सुहुय-हुयासणस्स न य विण उ अणुटुइ गुरुयणस्स । लिहइ य विज्जाहर-मिहुणयाई अवलोयइ सारस-जुयलयाई । मणहर करेइ जोव्वण-वियार अवलोयइ अप्पउं वार वार । मिहुणाणुराय-मुह-संगयासु तूसइ सा पोराणिय-कहासु । मई चिंतिउ वयह विसेसरण गहियउंजीवणु एयहे मरण । १० मउ मेयणि मयणु विलास-सारु जोवणु संभवइ न निव्वियारु । सो न अत्थि न य होइसइ जीउ को वि पाएण सदेहउ । जो जोव्वणु संपावियउ कुणई कया वि वियारु न एहउ ॥१७॥ [१६] ४. पु० ता जं... कायव्वउ १३. पु० रुयहिं १४. ला० जंपिउ मज्झु . [१५] १. पु० कुसुमुच्चयं ८. ला० मिहुणाणराग- ९. ला० एयहे जोव्वण-मएण १०. पु० मयणे मयण Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001874
Book TitleVilasvaikaha
Original Sutra AuthorSadharan
AuthorR M Shah
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1977
Total Pages310
LanguagePrakrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy