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________________ १४८ साहारणकइविरइया [९. २५ एवमगइ नाइरिय वग्गओ सयलु देव बोल्लणहं लग्गो । महिल-चरिउ महिला विआणए सप्पप्पसिणि सप्पो जि जाणए ॥२४॥ ___ [२५] अन्नहि पुणु दियहि विहाणयम्मि सहस चिय कन्नतेउरम्मि । आरूढ-तुंग-हम्मिय-तलम्नि आकंदु करंति य राउलम्मि । हा धावह धावह मुट्ठ मुट्ठ पियसहि विलासवइ नट्ठ नट्ठ । हा माए न याणउं कत्थ हुय एरिसु धाहावइ धावि-ध्य । ५ तं निमुणेवि ऊसुय देवि-राय तक्खणि विलासवइ-भवणि आय । पुच्छिय अणंगसुंदर कहे हि किह नह धूय किं तुहुं रुएहि । सा जपइ निसुणह मह सहीए दिट्ठउ कुमारु सो कह वि तीए । भत्तारु पवन्नउ मणण सो वि विन्नवणावसरु न लद्ध को वि । तो परम-नेह-सुह-संगएसु दियहेसु देव केसु वि गएमु । १० जण-रवु आयण्णिउ यहु असारु जिह सो मारियउ सणंकुमारु । तं मुणेवि सोएण दुक्खिया तदिणाउ ठिय तिसिय भुक्खिया । माणुस पि न समीवि पेच्छए निय-मणेण पर मरिउं इच्छए ॥२५॥ मइं जाणिउ तहे मरणाहिलासु तो खणु वि न मेल्लउं तीए पासु । सा पुण अवलोयइ मरण-छिद्द रयणीए वि मज्झ न एइ निद्द । अज्जं पुण मज्झ अउणियाए रयणीए समेण नुवणियाए। कह कह वि खणंतर निद हुय तो कत्थ न याणउं राय-धृय । छलिया हं निद-पिसाइयाए न वियाणउंपिय-सहि कत्थ माए। इय वयणु सुदुस्सहु तं सुणेवि मुच्छिय खणे सिंगारवइ देवि । अच्चंत-सोय-सल्लियउ झत्ति निवडिउ नरिंदु धरणिहिं धस ति । चंदण-जलोल्ल-वर-वीयणेण वीजिउ पासट्ठिय-परियणेण । अह सिसिर-समीरण-संगमेण कह कह वि लद्ध चेयण इमेण । [२४] ११. ला० बोल्लणह [२५] १. ला• अन्नहिं ३. पु० मुट्ठा......नट्ठा ४. पु० माइ १०. पु० अह सो १२. पु० मरिउमिच्छए [२६] १. पु० जाणिउं तह ५. पु० हउ निद्द ८. पु० वींजिउ पासहिय । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001874
Book TitleVilasvaikaha
Original Sutra AuthorSadharan
AuthorR M Shah
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1977
Total Pages310
LanguagePrakrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size17 MB
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