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________________ विलासवईकहा १० दीहर-वंसम्मि सुउज्जलयं बंधेवि महंतउं वक्कलयं । कइय वि दिवस गय एत्थंतरे आगय । . निज्जामय-पुरिस लहु-बेडिय-संगय ॥१०॥ [११] ते तावस-आसमि संपत्ता दिट्ठ कुमारि मुणि पुच्छंता । केण निबद्ध भिन्न-पोयद्धउ भणइ कुमार एहु मई बद्धउ । भणिउ तेहिं पुरीसोत्तिम सुव्वउ दीवे महाकडाहे वत्थव्वउ । साणुदेउ नामेण समिद्धउ सत्थवाहु सव्वत्थ पसिद्धउ । ५ तेण य मलय-विसइ वच्चंते जाणवत्तें वेगेण वहंते । पेच्छेवि एहु भिन्न-पोयद्धउ जलहि-तीरे जो तुम्हे हिं बद्धउ । तो गालवाहियहि चडाविय तुम्ह निमित्तु अम्हे पट्ठाविय । ता अम्हहं पसाउ लहु किज्जइ नंगरियइ पवहणि जाइज्जइ । कुमरें जंपिउ पाण-पियारिय भद्दहो अस्थि दुइज्जि भारिय । १० ते भणंति को दोसु भविस्सइ चलउ सा वि किं भारु करिस्सइ । तो तावस-जणु आपुच्छेविणु चलिउ कुमारु कंत गिण्हेविणु । तावस-लोए अणुगम्मतउ तक्खणि जलहि तीरि संपत्तउ । तो पणमेविणु सव्वे तावस पट्ठाविय । तावसि सविसेसेणं कुमरेण खमाविय ॥११॥ [१२] भयवइ पणमेवि विलासवई घग्धरिय-कंठ निब्भरु रुयइ । भयवइ पुणु कइयहं हउं विमलं पेच्छिसु वियसिउ तुह मुह-कमलं । [१०] १० ला० महंतं ११. ला0 एत्थंतर [११] १.ला० -आसम, पु० कुमरि २. पु० केण निविदछु ३. पु० पुरिसुत्तम ५ ला० वच्चंतई जाणवत्त... वहंतेइ ६. ला० पेच्छिवि ७. ला० अयालवाहियहि. पु० अगालिचाहियहि ८. पु० पवहणे ९. ला० कुमरि...दुइज्जिय ११ पु० गेण्हेविणु १२. ला. तक्खणे....तीरे [१२] १. ला० ग्घग्घरियकंठ २. पु० पेच्छिविसु Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001874
Book TitleVilasvaikaha
Original Sutra AuthorSadharan
AuthorR M Shah
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1977
Total Pages310
LanguagePrakrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size17 MB
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