SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 141
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ६४ साहारणकविरश्या [3] तो पदिठहिं तीए पलोइयउ मेल्लेवि उ इय संभम-भरिया पच्छिय छड्डेविणु मुच्छियया तो कुमरु वियप्पर एउ सई ५ पडु मेल्लिवि तो आसासिया भणियं च तीए कि एउ पिया सा जंप कीस न दि तुमं हा कीस न याणसि कहहि लहुँ एहिं चिय कीस न दिट्ठ मए १० तो चिंतइ संक-परायण इं तो तीए वि सो विन्नासियओ इय निम्भर - पेम्म-परायण हं अह अन्न- दिवसे चिंतइ कुमरो संपs निय-देसह जाइयई ५ जर तुहु पडिहासइ ससि वयणे जइ नवि फुड कहेमि तो अणहिउ लक्खर । इय चिंतेवि कुमारो पड - वइयरु अक्ख ॥ ९ ॥ [१०] सा जंपइ जं पडिहाइ तुहं पेच्छामि जत्थ तुम्हहं चलणे जं जुत्तु तह वि अणुचिट्ठिय तो जलहि-तीरे जाएवि कओ Jain Education International न यदि समीवि वि संठियउ । हा अज्जउत्त भणमाणिइया । सहसा धरणीयले सापडिया । हा कि अणुचिह्नित एउ मई । किं देवि विमुच्छिय पुच्छियया । किं तं कहि कुमरें भणिया । सो भणइ न याणमि देवि इमं । उप्पन्नउ सज्झ गरुउ महुँ । परमत्थु कहहि जो कि तुमए । कायर होंति इत्थिर्हि मणई । [५.१० पच्चर पेच्छेवि पडो गहिओ । उ को वि कालु सेविय-वहं । aण वासु सकामहं नाहि वरो । तो पुच्छिय तेण विलासवई । ता करमि जन्तु देसह गमणे । तं चैव य भावइ नाह महं । र मज्झ नाह एत्थं पिवणे । किं अज्जउत्त मह पुच्छिय | तरुसिहरे भिन्न- बोहित्य - ओ । [९] २. ला० मेल्लवि ४. ला० अणुचेठिङ ५. ला० मेल्लवि ६. ला० कुमरि ९. ला० इह १०. ला०हुति ११. पु० कहेमी [१०] १. ला० तीय, पु०विण्यासियउ, ला०पेच्छिवि ३. ला० कुमारी ५. पु० तुह ६. ला० परिहासइ ८ पु० पुच्छियई For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001874
Book TitleVilasvaikaha
Original Sutra AuthorSadharan
AuthorR M Shah
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1977
Total Pages310
LanguagePrakrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy