SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 52
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रस्तावना जीयाज्जैनमतान्तरिक्ष तरणिः प्रज्ञाहुताशारणिलोन्मुद्रित शेष भाग्यसरणिः श्रेयः सुधासारणिः । सर्वाकारपरोपकारविपणिः श्रीचित्रचिन्तामणिः लोकाविष्कृतकीर्तिधौतधरणिः श्री देवचन्द्रो गणिः || (२) उद्योतनसूरिनी प्राकृत कुवलयमाला ( रचना ई० स० ७७९) मां कोई हालिक कविनी विलासवती - कथानो उल्लेख होवानुं आ० जिनविजयजीए जणायुं छे.' पण आ कृतिनी कोई प्रति के बीजा कोई स्थळे आनो उल्लेख पण मळतो नथी. वळी कुवलयमालानी प्रस्तानामां तेना विद्वान सम्पादक डो० आध्ये पण कुवलयमालामां उल्लिखित अन्य कविओ कृतिओना नामोमां आवा कोई कवि के कृतिनी नोंध लीधी नथी. * (३) जिनरत्न कोषमां डो० वेलणकर, साधारणकृत विलासवई - कहानी साथे साथे ज एक लक्ष्मीधर महर्षित 'विलासवई - कहा ' नी प्रति जेसलमेरना भंडारमां होवानुं नोंघे छे. परन्तु आ माहिती भ्रामक जणाय छे, कारण के जेसलमेरना बन्ने सूचिपत्रो आवी कोई कृतिनी नोंध आपता नथी. वळी साधारण कविनी 'विलासवती' नो प्रशस्तिमां साधारण कविने काव्य रचवा प्रेरनारनं नाम 'लच्छीहर साहु' (लक्ष्नीवर साधु ) एवं आपेल छे, " ते नामते भ्रमथी कनुं नाम मानो लई, विलासवई - कहा लक्ष्मीधर साधु महर्षिनी रचना होवानुं मानी लीधुं जणाय छे. 8 (४) पाटण - सूचिपत्रमा एक संस्कृत विलासवती - कथा नोंधायेल छे. ५२२ गाथा प्रमाणनी आ गद्यकथानुं विषय वस्तु शुं छे ते जाणो शकायुं नथी. पण ते शील विषये छे, तेवी नोंध छे. तेनो रचना - समय अज्ञात छे, पण जे ताडपत्रीय हस्तप्रतमांथी ते मळे छे तेनो समय चौदमी शताब्दी आसपासनो होई, कृतिनी रचना ते पूर्वेनी मानी शकाय ४३ (५) विश्वनाथ ( १४ मी सदी) साहित्यदर्पणमां विलासवती नामे एक नाट्यसकनो उल्लेख करे छे." पण तेनां विषय-वस्तु के कर्त्ता विशे कोई माहिती तेथे आनी नथी. (६) प्राकृतसर्वस्वना कर्त्ता मार्कण्डेय ( ई०० १७ मी सदी अनु० ) पोते ज रचेल एक विलासवती - सहकनो उल्लेख करे छे. प्राकृत - सर्वस्व (५.१३१) मां उदाहरणरूपे तेणे तँ नाकानी निम्नलिखित बे पंक्तिओ पण आपी छे पाणा गओ भमरो लब्भइ दुक्खं गईदेसु । अने सुहाअ रज्ज फिर होइ रण्णो । परन्तु आना कथावस्तु के पात्रो विशे कोई माहिती उपलब्ध नथा . १. कुवलयमाला भा-१ ( किंचित् प्रास्ताविक, पृ०१३ ) २. कुवलयमाला भा - २ Introduction P. 76 ३. जिनरत्नकोष पृ० ३५८ ४ जुओ जेसलमेर सूचिपत्र - इलाल अने जेसलमेर सूचिपत्र - मुनि पुण्यविज्ञ पंजी विलासवई कहा - प्रशस्ति पृ० १९५. ५. ६. पाटण सूचिपत्र - दलाल पृ० १७६ ७. साहित्य-दर्पण, विश्वनाथ पृ० ३४७ ८. प्राकृत - सर्वस्त्र मूल पृ० ६५, प्रस्तावना पृ० १८-१९ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001874
Book TitleVilasvaikaha
Original Sutra AuthorSadharan
AuthorR M Shah
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1977
Total Pages310
LanguagePrakrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy