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विलासबई कहा एन नाम सूबवे छे तेम, तेना परथी पडीने मरनारनी इच्छा संतोषे छे-पूरे छे. सोमदेवना कथासरित्सागरमां आवो ज एक कथा छे.' जेमां नायक मनमान्या पत्नी-मित्र मेळववा शिखरेथी पडतुं मूके छे -
भार्यामित्रे इमे एव भूयास्तां स्मरतो मम । अन्यजन्मन्यपीत्युक्त्वा हृदि कृत्वा च शंकरम् ॥१६४।। मया गिरितटात्तस्मान्निपत्य प्रसभं ततः । ताभ्यां स्वपत्नीमित्राभ्यां स मुक्तं शरीरकम् ॥१६५॥
(कथासरित्सागर लं०४.) 'तदनन्तर मानव-शरीर छोडवानी इच्छाथी में अन्तिम काळे ए कामना करी के पछीमा जन्ममां पण ए ज बन्ने मारा पत्नी अने मित्र थाय . आ प्रमाणे मनमा शंकरखें ध्यान करीने पर्वत-हिमालयना शिखर परथी पडीने मित्र अने पत्नी साये में देह छोड्यो'.
७. विलासबई-कहा साथे नाम-साम्य धरावती इतर रचनाओ विलासवई-कहा साथे नाम-साम्य धरावती केटलीक संस्कृत-प्राकृत कृतिओ के कृतिओना उल्लेखो मळे छे. तेनी अहीं नोंध लेवी अनुचित नहीं गणाय.
(१) सौथी प्रथम उल्लेखनीय छे प्रसिद्ध जैनाचार्य हेमचंद्रसूरिना शिष्य कवि देवचंद्र गणि-विरचित संस्कृत नाटिका विलासवती. अद्यावधि आ नाटिकानो उल्लेख मात्र मळतो हतो. परंतु ला० द० विद्यामं देर, अमदावादना हस्तप्रत-संग्रहमांथी आनी एक अपूर्ण प्रत मळी आबी छे.' पांच अंकनी आ नाटिका विलासवती अने सनत्कुमारनी प्रणयकथानो ज विषय लई रचाई छे. तेना पांव अंकोना नान आ प्रमाणे छे -
(२) विलास वती-लाभोपायः । (२) विलासवती-लाभः । (३) देशान्तर-गमन-मन्त्रः । (४) विलासवती-विप्रलम्भः ।
(५) विद्याधर-चक्रवर्तित्व-लाभः ।
अंकोनां नाम परथी जणाय छे के आमां सनत्कुमार चक्रवर्तीपद प्राप्त करे छे त्यां मुधीनी कथा वणो लेवामां आवी छे. नाटिकाना प्रशस्ति-लोको नीचे आप्या छ -
धवलयति कलाभिर्यावदिन्दुस्त्रिलोकी हरति तिमिरभारं भानुमानेष यावत् । अभिनव-चरितार्थ नाटकं तावदेतत्
प्रथयतु जगति श्रीदेवचन्द्रस्य कीर्तिम् ।। १. कथासरित्सागर - भा० १ पृ० ४५०-५१ २. जैन साहित्यनो संक्षिप्त इतिहास पृ०२८० (पेरा०४०१) ३ ला० द. भारतीय संस्कृति विद्यामन्दिर, अमदावाद, प्रति नं० ३६६२
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