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________________ प्रस्तावना ४५ हंसि कुंकुमपंकपिंजरतणुं काऊण जे वंचिओ तब्भत्ता किल चक्कवाअघरिणी एस ति मण्णतओ। एहं तं मह दुक्कअं परिणअं दुक्खाण सिक्खावणं । एक्कत्थो वि ण जासि जेण विसयं दिद्वित्तिहाअस्स वि।। (कप्पूरमंजरी-२.८) 'हसीने केशर-विलेपनथी पीळी रंगीने तेना प्रियतम हंसने (में) ठगेलो, जेथी ते हसीने चक्रवाकी मानवा लागेलो. ते मारुं दुष्कृत्य मने ज दुःखनी शिखामण आपनारु बनी गयु के एक ज स्थानमा होवा छतां तु मारी नजरे पडतो नथी .' ए जोई शकाय छे के बन्नेनी कल्पनामां सहेज ज तफावत छे. राजशेखरे आ कल्पना समराइच्च-कहा उपरथी लीधी होवानो संभव छे. कदाच बन्नेनो स्रोत कोई त्रीजी ज प्राचीन कृति होय. (४) विलासवतीनु विद्याधर राजा अनंगरतिए करेलु अपहरण, अशोक-वाटिकामां विलासवतीने केद राखवी, पवनगतिने दूत तरीके मोकलवो, दूत पवनगतिनो अनंगरति साथे विवाद, अंते सनत्कुमारनी अनंगरति परनी चडाई अने युद्ध- आ समग्र कथानक पर रामकथानी स्पष्ट छाप जणाई आवे छे. पवनगतिनु नाम पवनसुत हनुमाननुं स्मरण करावे छे. अशोकवाटिकामांमी विलासवती लंकामां अशोकवनिकामा रहे ली सीतानी आबेहूब प्रतिच्छवि लागे छे.' (५) नायकनु सनत्कुमार नाम, तेनुं चक्रवर्तीपणु, विद्याधरोनो तेणे करेलो पराभव, विद्याधर कन्या- पाणि ग्रहण-आ अंशो जैन साहित्यमा प्रचलित सनत्कुमार चक्रवर्तीनी कथाना केटलांक अंश साथे साम्प धरावे छे जैन परंपामां प्रसिद्ध त्रेषठ शलाका पुरुषो-महापुरुषोमां बार चक्रवर्तीओनो समावेश थाय छे. आ बार चक्रवर्तीओमां चोथा चक्रवर्तीनुं नाम सनत्कुमार छे. अनेक कृतिओ-खास करीने पुराण ग्रन्थो-मां आ सनत्कुमार चक्रवर्तीन चरित्र जोवा मळे छे. आ सनत्कुमारनी कथाना घटकोनुं विगतवार विश्लेषण करी डो. एच.सी. भायाणीए तेमां त्रण घटको समायेला होवान सिद्ध कयु छे. ते त्रणमां बीजो घटक आपणी कथा साथे साम्य घरावे छे.२ (६) विलासवती अने सनत्कुमारनी तापस-आश्रममांथी विदाय शाकुन्तलना चोथा अंकनी यादी आपे छे. ३ (७) विलासवती प्रियतम विरहथी दुःखी थई, लतापाशथी गळे फांसो बांधी मरवा तत्पर बने छे ते प्रसंग श्रीपनी नाटिका रत्नावलीमां आवता सागरिकाना लतापाशवडे फांसो खाई मरसाना प्रयत्न स.थे घणो मळनो आवे छे. (८) विलासवई -कहा (६. १-७)मां आवतुं मनोरथ-पूरण शिखरनुं कथानक अंधश्रद्धा अने वहेमनी ठेकडी उड़ाडतुं एक सुन्दर कथानक छे. एमां आवतुं मनोरथ-पूरण शिखर, १. वाल्मीकि रामायण २. सणतुकुमार चरिय-संपा. डो० एच. सी. भायाणी, एम. सी. मोदी-प्रस्तावना पृ०३-१३. ३. अभिज्ञान शाकुन्तल, अंक-४ ४. रत्नावली -श्रीहर्ष , संपा०सी० आर० देवधर अने एन० जी० सुरू पृ० ६३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001874
Book TitleVilasvaikaha
Original Sutra AuthorSadharan
AuthorR M Shah
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1977
Total Pages310
LanguagePrakrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size17 MB
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