________________
विलासवई-कहा कोई चरणप्रमोद छे अने जे केटलाक दशकाओथी जूनी नथी-पण आ दृष्टांत उपर रचायेली मळे छे.' .. आ सुंदर रूपकनु पगेरू ब्राहाण-परंपरामां छेक महाभारत-स्त्रीपर्वमां मळे छे. त्यां पुत्रशोकथी व्यथित धृतराष्ट्रने विदुरजी संसारनुं स्वरूप समजावतां आ दृष्टांत कहे छे. केटलाक फेरफारो सिवाय आ समग्र कथानक श्रमण-परंपराना दृष्टांत जेवू ज छे.
बौद्धोना अवदान-साहित्यमां आ रूपक होवानी नोंध डॉ. जगदीशचंद्र जैने तेमना 'प्राकृत जैन कथा-साहित्य' मां लीधी छे.
हिन्दु, जैन, बौद्ध उपरांत मुसलमान, खिस्ती अने यहुदी धार्मिक साहित्यमां पण, बोधकथा तरीके सरखं महत्व घरावता, आ बिनसांप्रदायिक कथानकनो प्रसार होवानी शोध डॉ० अन्स्ट कुहने (Ernst Kuhn) करी होवानु विन्टरनित्झ नोंधे छे."
(३) त्रीजें सुंदर कथानक अगियारमी संधिमा आवतु हंस-हंसीनु कथानक छे (वि०११. १३-१६). सनत्कुमार चित्रांगद मुनिने विलासवती साथेना पोताना वारंवारना वियोगनु कारण पूछे छे.
भयवं किं परभवे आसि, मई पाविउ जे बहु-दुक्ख-रासि ? । बहुवार विलासवई-विओउ,
विरहम्मि तीए किं दुसहु सोउ ? ॥११.१३.५ एना जवाबमा मुनि सनत्कुमारने तेना पूर्वजन्मनी वात कहे छे- जेमां सनत्कुमार कांपि. ल्य-नगरनो राजकुमार रामगुप्त हतो अने विलासवती गर्जनकाधिपतिनी पुत्री हारप्रभा हती बन्नेना लग्न थयेल हता. विविध भोगो भोगवता ते नवयुवान पति-पत्नी एकवार गंगाना रमणीय तटे क्रीडार्थे गया. केसर आदि सुगंधी द्रव्योथी तेआ शरर -विलेपन करी रह्या हता. तेवामां एक सुंदर हंसयुगल त्यां आवी चड. हारप्रभाने हंसहंसीने केसरथी रंगीने मजाक करवानो विचार आव्यो. बन्नेए हंसजोडाने केसरनुं विलेपन करी रंगी दीधु. रंग लागवाथी हंसहंसी एकबीजाने चक्रवाक-चक्रवाकी समजवाथी ओळखी शक्या नहीं अने विरहथी झूरवा लाग्यां. थोडी ज वारमा अन्योन्यना विरहथी अत्यंत दुःखी बन्ने मरवा तत्पर थयां. मरवा माटे ते बन्ने पाणीमां पडया. पण पाणीमां पडवाने लीधे विलेपन धोवाई जतां फरीथी ए बीजाने ओळखी गया, अने बची गया. हंस-हंसीने विरह कराववाथी जे अंतराय-कर्म सनत्कुमार-विलासवतीए बांध्यु तेना ज कारणे तेमने आ जन्ममां वारंवार वियोगदुःख भोगव७ पडयु.
आ कथानकने तद्दन मळती कल्पना राजशेखर (ई० स० ८५५-९३०)-रचित प्राकृत सट्टक कर्पूरमंजरीमा जोवा मळे छे, नायक चंडपालने केतकीपत्र पर लखी मोकलावेला प्रेमपत्रमा नायकना विरहमां दुःखी नायिका कर्पूरमंजरी लखे छे
१. सज्झायमाळा-शा. चंदुलाल छगनलाल, पृ० ४४४-४४६. २. महाभारत-स्त्री पर्व, अध्याय-५-६ पृ० १९-२४ ३. प्राकृत जैन कथा साहित्य-ॉ. जगदीशचंद्र जैन. पृ. ९८ टिप्पण ४. हिस्टरी औफ इन्डियन लिटरेचर, विन्टरनित्झ, भाग १ पृ. ४०९ ५. कर्पूरमंजरी-राजशेखर, संपा० एन० जी० सुरु, प्रस्तावना पृ० १४१
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org