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प्रस्तावना
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जयरामे गाथा छंदमां धर्मपरीक्षा नामे कृति रची हती. एने हरिषेणे वि० सं० २०४४ मां अपभ्रंशमां पद्धडिया बंधनां गूंथी. आ धम्माक्खामां तेमज वि० सं० १०७० मां अमितगतिए संस्कृतमां रचेलो धर्म रीक्षामां मधुविन्दु-दृष्टांत होवानो उल्लेख र्डा० उपाध्येए बृहत्कथाकोषना टिप्पणमां कर्यो छे. '
साधारण कविना समकालीन दिगंबर मुनि श्रीचंद्रे अणहिलपुर पाटणमां ज जेनी रचना विलासवई - कहानी रचना पछीना बे त्रण वर्णमां ज करेली छे, तेवी अपभ्रंश 'कहकोसु' मां पण आ कथानक आवे छे. २
जंबूस्वामी विषयक अनेक रचनाओमां आ दृष्टांत संभवे छे. (कारण वमुदेवहिंडीमा जंबूस्वामीना कथानक मां ए दृष्टांत आबेलुं छे.) आवी बे दिगंबर कृतिओ - १. ब्रह्म जिनदास रचित संस्कृत जंबूस्वामि चरित्र (वि. सं. १५२० ) अने २. पं० राजमल्लविरचित संस्कृत जंबूस्वामि चरित्र (वि. सं. १६३२) - मां आ दृष्टांत होवानी नोंध ङ. वी. पी. जैने लीधी छे. उ
श्वेताम्बर परंपरामां वसुदेवहिंडी अने समराइच्च-कहानी नोंध लेवाई ज गई छे. त्यारबाद जयसिंहसूरिना धर्मोपदेशमाला विवरणमां आ दृष्टांत सुंदर रीते रजू थयुं छे. आ संस्कृत रचना वि. सं. ९१५ मां थयेल छे. अगियारमी सदीना पूर्वकाळमां प्राकृत जंबूचरियं, जेनी रचना गुणपाल मुनिए करी छे, तेना आठमा उद्देशमां आ दृष्टांत छे. “ हेमचंद्राचार्यना परिशिष्ट - पर्वना प्रथम सर्गमां श्लोक दृष्टांत जंबूचरित्र अंतर्गत आवे छे
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१९९ थी २२३ सुधी विस्तारथी आ
वि. सं. १२७९-१२९० ना समयमा उदयप्रभसूरि-रचित संस्कृत धर्माभ्युदय - महाकाव्यमां पण आ दृष्टांत आवे छे ७
समराइच्च-कहा उपरथी रचायेल प्रद्युम्नसूरिना संस्कृत समरादित्य- संक्षेप ( रचना संवत • (१३२४) मां बीजा भवमां उपनय साथे (श्लोक ३१० - ३४४) आ दृष्टांत आवेल छे.
गुजराती भाषामा उपाध्याय यशोविजयजी रचित जंबूस्वामी - रास (वि. सं. १७३९) मां अने पद्मविजयना समरादित्य केवलीनो रास (वि. सं १८३९ ) ० मां बीजा खंडनी पंदरमी दाळमां आ दृष्टांत वणायेल छे. ए उपरांत मधुबिंदुआनी सज्झाय नामे एक स्वतंत्र सज्झाय - जेना कर्त्ता
१. बृहत्कथाकोष - टिप्पण पृ० ३८८
२. कह - कोसु ( कथाकोश) पृ० ३५३
३. जंबूसामिचरिउ - वीर, प्रस्तावना पृ० ६२.
४. धर्मोपदेशमाला - विवरण, कथा ७३ मो, पृ० १४३.
५. जंबूचरियं गुणपाल, पृ० ८३.
६. परिशिष्टपर्व - हेमचंद्र पृ० ६२-६५
७.
धर्माभ्युदय महाकाव्य - उदयप्रभसूरि, संपा० मुनि चतुरविजय तथा पुण्यविजयजी, पृ० ७०
८. समरादित्य - संक्षेप, संपा. जेकोबी. पृ० ५०-६०
९. जंबूस्वामीरास - उपाध्याय यशोविजयजी, संपा० डा. रमणलाल ची. शाह, पृ० ३२-३५
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१०. समरादित्य केवळीनो रास पं०पद्मविजयजी पृ० ६० - ६२.
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