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विलासवई-कहा संसाररूपी अटवीमां अटवायो, ज्यां मद-मान-रूपी दुर्गम पर्वतो, क्रोधरूपी उग्र दावानळ, मायाप्रपंच-कुटिलतारूपी वांकीचूकी नदीओ, लोभादिक ऊंडी गर्ताओ, विषयरूपी मधुरस्वादवाळा पण विकमां विषमय वृक्षो, ठट्ठा-मश्करीरूप कषायस्वादु आमळा-बहेड़ा-हरडे जेवां वृक्षो, अने राग-द्वेषरूपी वाघ-सिंड्ना विघ्नो हता. मिथ्यात्त्वरूपो भ्रमने लई कुधर्मरूपी दिशाभ्रममां पडयो. तेनी पुंठे यमरूपी हाथी पडयो जेने चारप्रकारना आयुष्य (देव,मनुष्य, तिर्यंच, नारक )रूपी चार दंतुशळ हता, समयादिथी जे चपलकर्ण-सावधान हतो, अने लांबी सूढरूप दूरथी ज जोवने खेंची लेवानी तेनी शक्ति हतो. सामे धसो आवती विकराळ राक्षसी ए एवाज स्वरूपवाळी वृद्धावस्था हतो. ऊंचं वटवृक्ष ते मुक्तजीवरूर पक्षीओवाळु, मरणभयरहित मोक्षधाम हतु, विषयातुरो त्यां जवा शक्तिमान न थई शके. जुनो कूवो ते मनुष्य-भव, जे चोरासीलाख योनिरूप लताओवडे ढंकायेल मुखवाळो हतो. तेमां शरणंम ते आयुष्य. नीचे रहेल अजगर ते नरकावास. चार सर्पो ते चार कषाय - क्रोध, मान, माया अने लोभ. आयुष्यरूपी शरथंभने कापनारा धवल-कृष्ण ऊंदरो ते महिनाना धवल-कृष्ण बे पक्ष-पखवाडिआ. मधमाखीओ ते शरीर-व्याधिओ. क्षणमात्र सुखवाळा मघुबिन्दुओ ते विषयसुखो. दयावान विद्याधर ते भवभयमांथी तारनार धर्मगुरु. आम मधुबिन्दुरूप तुच्छ भोगोनी पकडमां पकडायेलो विमूढमति जीव अनेक दुःखो सहन करवा छतां धर्ममा उद्यम करतो नथी.
आ रीते योग्य नवा रूपकोनी उमेरणीथी सर्वागसंपूर्ण बनावीने अने पोतानी प्रसन्न-मधुर शैलीमां काव्यरूप आपीने आ रूपकने कविए नर्बु ज सौन्दर्य आप्यु छे.
जैनोनी श्वेताम्बर-दिगम्बर बंने परम्परामां अनेक कथाओमां, संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश अने गुजराती सुद्धामां, छेक वीसमी सदी सुधोनी कृतिओमां आ दृष्टांत देखा दे छे. नीचे एवी घणी कृतिओनी नोंध आपी छे.
दिगम्बर-परम्परामां सौ प्रथम शिवार्य (के शिवकोटि आचार्य) - जेनो समय ईसवी पहेली शताब्दी सुधी जूनो होई शके एवी डो. ए. एन. उपाध्येनी मान्यता छे' - नी भगवतीआराधनामां आ दृष्टांत जोवा मळे छे.' अहों हाथीने बदले वाघ मूकवामां आवेल छे. (परवर्ती बधी दगंबर कृतेओ हाथीना स्थाने वाघ, ज रूपक आपे छे.) ते सिवाय वसुदेवहिंडीनी समान ज आखु रूपक छे.ते पछी गुणभद्राचार्य रचित उत्तरपुराण के जे संस्कृतभाषामां ई० स० ८५० थी ९०० कच्चे रचायानो संभव छे, तेमा ७६ मा पर्वमां जंबूविषयक कथामां ढंकमां आ दृष्टांत आवे छे." बीजी बे रचनाओ १ प्रभाचंद्र-कृत कथाकोष (संस्कृत, रचना समय-११मी सदी) अने २ नेमिदत्त-रचित आराधना -कथाकोष (संस्कृत, १६ मी सदीनी शरूआत)-जे बन्ने पूर्वोल्लिखित भगवती-आराधनाना आधारे रचाई छे-मां पण आ दृष्टांत आवे छे." हरिषेणना बृहत्कथाकोश (ई० स० ९३१-३२ मां सौराष्ट्रना वढवाणमां रचायेल, संस्कृत पद्यमय) मां त्रिविक्रम-कथानक नामे ९२मी कथा आ ज दृष्टांतविषयक छे.'
१. बृहत् कथाकोष, प्रस्तावना पृ० ५५ २. बृहत् कथाकोष, प्रस्तावना पृ० ७६. ३. महापुराण-जिनसेन प्रस्तावना पृ० ३४ ४. उत्तरपुराण-गुणभद्र पृ० ५३५-३६ ५. बृहत्कथाकोष, प्रस्तावना पृ० ७६ ६. बृहत्कथाकोष-मूळ पृ० २१७
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