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________________ १४ विलासबई-कहा मोहन पट हतो. आ जोई विलासवतीने आ अजगर ज गळी गयो हशे एम मानी शोकाकुळ. कुमार मुञ्छित थई धरणीपर ढळी पड्यो. (२१-२५) समुद्रना शीतळ वायुथी चेतन प्राप्त करतां ज, अजगरना पेटमां प्रियानो समागम थशे एम मानी, पोतानी जातने पण अजगरने स्वाधीन करवानु नक्की करो, कुमार अजगर पासे गयो. लाकडी मारी छंछेडवा छतां अजगरे कुमारने गळयो नहीं अने उलटुमोमांनो नयनमोहन पट काढी नाखी, कूडाळानो जेम गोळ वळी गयो. आम अजगरे पोताने गळयो नहि एथी कुमारे झाड उपर चडी फांसो खाई मरवा निर्णय कयों. एक वटवृक्ष पर चडी तेणे गळामां फांसो नाख्यो अने लटकी पड्यो. (२६-२७) थोडीवारे आंखो खोली तो कोई मुनिने पोताना अंगोनु कमंडलुना शीतळ जळथी सिंचन करतां जोया. मुनिए केवी रोते तेने वृक्ष पर लटकतां अने फांसो तुटो जता नीचे पडतां जोयो तथा बचाव्यो तेनी वात करो. मुनिए आम आत्महत्या करवानु कारण पूछतां कुमारे तेमने ज्ञानी जाणी निःसंकोच पोतानी समग्र कथा कही अने पोताना प्रियतमा-वियोगना दुःखनो कोई उपाय बताववा तेमने विनंति करी. आथी मुनिए तेने मलयपर्वत पर आवेला मनोरथ-पूरण नामना एक शिखरनी वात करी, के ज्यांथी पडनार दरेक मनुष्यना मनोरथ पूरा थाय छे. मुनिए तेने त्यां जई मनवांछित प्रणिधान करी शिखरेथी पडवा कयु. आथी मुनिने नमन करी, प्रियानी प्राप्ति माटे मनोरथपूरण शिखरेथी पडी मरणने भेटवा सनत्कुमार चाली नीकळयो. (२८-३१) संधि-६ त्रण दिवसे कुमार उत्तुंग मलयपर्वते आवी पहोंच्यो. प्रियाविरहथी मूढ बनी गयेला तेणे मनोरथपूरण शिखर पर चढी प्रार्थना करो के, 'हे शिखर ! तारी कृपाथी बीजा जन्ममां मने विलासवतीनो संगम होजो'. आवु प्रणिधान करी जेवो तेणे कूदको मार्यो के अधवच्चेथी 'ज आकाशमार्गे जता कोई विधाधरे तेने पकडी लीधो अने शीतळ आवासस्थानमा लई जई, आश्वासन आपी, आवो उत्तम आकृतिधारी पुरुष थईने आवी हलकी चेष्टा करवाने कारण पूछय कुमारे तेने अथेति वात कही. (१-३) _ 'स्नेह आवु आंधळं साहस करावे छे' एम कही विद्याधरे कुमारने उपदेश आप्यो के 'दान, तप, शोल, वगेरेना पालनथी सुफळ मळे छे, नहि के कोई बाह्योपचारथी'. तेणे एक पति -पत्नीनु दृष्टांत आप्यु, जेमा पति तेनी पत्नीने मुद्दल चाहतो न हतो; ज्यारे पत्नी पतिने अत्यंत चाहती हती. अणगमती पत्नीथी छूटवा पतिए मनोरथपूरण शिखर उपरथी पडी एवी प्रार्थना साथे प्राण छोडया के बीजा जन्मे ते पत्नी न मळजो. पति-मरणथी व्याकुळ पत्नीए पोताने भवोभव ए ज भर्तार मळजो एवी इच्छा व्यक्त करी ए ज शिखर उपरथी पडतु मूक्यु ! बन्नेनी विरोधी इच्छाओने शिखर कई रीते पूरी करवानु हतु ? आथी आवु तर्कहीन निष्फळ कृत्य डाह्या माणसे कदी न करतुं जोईए, एवो उपदेश विधाघरे आप्यो. (४-७) आ पछी तेणे कुमारने तेनी प्रिया क्या अने क्यारे गुम थई ए पूछय. त्रण दिवस पूर्वे अने दश योजन दूर तेणो खोवाई छे ते जाणी विधाधरे कुमारने चिंता छोडी देवा कयु. तेणे कध', 'आ क्षेत्रमा अमारा स्वामी श्री चक्रसेन राजाए अप्रतिहतचक्रा विद्यार्नु आराधन कयु छे. अडतालोस योजन सुधीना समग्र विस्तारमा तेणे क्षेत्रशुद्धि करी छे. आ विस्तारनी अंतर्गत समग्र वनमां बधां जीवोने अभय प्रदान करेलु छे. सात दिवस सुधी हिंसातुं निवारण Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001874
Book TitleVilasvaikaha
Original Sutra AuthorSadharan
AuthorR M Shah
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1977
Total Pages310
LanguagePrakrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size17 MB
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