________________
६. १७ ]
विलासवईकहा
[१७] विरहाउलु तं सि जीवहि वयंस उज्जोविय-सिरि-जसवम्म-बस । सुंदरि तुम पि अविहव हवेहि अविओउ निच्चु कंतह लहेहि । इय जाव दिन आसीस तेण वसुभूइ वियाणिउ तो सरेण ।
अह पच्चभि याणिवि नियय मित्तु आणंदह भरिउ कुमार-चित्त । ५ तो बाह-जलोल्लिय-लोयणेण पल्लवमउ आसणु दिन्नु तेण ।
चलणह पक्खालणु सलिलु लेवि संपत्त विलासबई वि देवि । कम धोय कराविय पाण-वित्ति पच्छा असेस पुच्छिउ पउत्ति । किह तई वयंस तरियउ समुदु किह वा वि दुक्खु वि सहिउ रउदु ।
कस्स व उद्देसह आगओ त्ति किह तइं हां एत्थ वियाणिओ त्ति । १० वसुभूइ भणइ निसुणेउ मित्तु अवहाणु देवि खणु एक्क-चित्तु ।
तइयह दारुणि पवणि पवन्नइ जाणवत्ति आवत्त-विवन्नइ । भविय व्य-वसेण मई पत्तउ फल हु एक्कु तहि लग्गु तरंतउ । १७॥
[१८] अह तेण मच्छ-मयरहिं रउद्द पंचहिं दिणेहिं लंघिउ समुदु । तुह मित्त विरह-दुह-भर-समग्गु इह मलय-कूलि उत्तरेवि लग्गु । जल-निहि-तड-दसण-आगएण तो दिठ्ठ विसिद्धि तावसेण । मई पणमिउं दिन्नाऽऽसीस तेण आसासिउ परम-दयालुएण । ५ भणिओ य एहि आसन्नयम्मि गच्छम्ह वच्छ आसमपम्मि ।
गय दो वि तवोवणे तत्थ दिछु झाणविउ कुलवइ सुहु निविठु । पणमिउ वयंस मई आयरेण तो पाण-वित्ति कारविय तेण । पच्छा पुच्छिउ वच्छय कुओ त्ति एगागि किह व इह आगो ति ।
तो मई वित्तंतु सवित्थरेण साहियउ तस्स गग्गय-गिरेण । [१७] ७. पु० कराविउ १०. ला० निसुणेहि...एक्कु-११. ला० तइयहु, पु० दारुणे
पवणे.. जाणवत्ते....विवण्णए । १२. पु० तुरंतउ [१८] १. ला0 मयरेहिं २. ला० विरह-भर-दुह-समग्गु ३. ला०-दसण-आणएण.. पु०
विसढे ४ ला० आसासिय ५. ला० एहिं ६ ला० दो वि ता वणे, पु० सुह निविदछ ७. पु० कारविउ ८. ला० कह व ९. पु० सुवित्थरेण
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org