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________________ ९. ३४ ] सा जंपइ कीरइ तुझ एउ सो विज्जा-साणु कुणइ जाव ५ ता मलय- कूले तुंहुं वच्छ जाहि ओसहि संजीवणि ह छेहि तहिं एक्कु घाय - जज्जर- सरीरु तो जीवावेज्जसि सो इमेण तं सलु वि देव तदेव जाउ १० अवलोइय पुण्णेहिं तुम्ह पाय विलासवई कहा १५३ पर अज्ज वि होस काल -खेउ । मेलावउ होस तुज्झ ताव | तावसह aataण तत्थ ठाहि । निच्च पि जलहि- सेवणु करेहि । Frases विज्जाहरहं वीरु । दंसिस्स तुज्झ कुमारु जेण । ता इय कमेण तु पासि आउ । चिरयालि मणोरह सफल जाय । ता पसाउ अम्ह दिज्जए पच्छयाव- दद्धस्स सामिणो तामलितिपुरि गमणु किज्जए । कुह चित्त-साहारणं पुणो ॥ ३४ ॥ ॥ इइ विलासवई - कहाए विणयंधर- संजोगो नाम नवमा संधी समत्ता ॥ २० [३४] ४. ला० मेलावउ तें महुं तुम तां । ५. ला० तो मलय- कुठे तुहुं ताव जाहि ... तोवणे ११. ला० अम्ह किज्जए १२ पु० चित्तु Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001874
Book TitleVilasvaikaha
Original Sutra AuthorSadharan
AuthorR M Shah
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1977
Total Pages310
LanguagePrakrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size17 MB
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