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________________ संधि-१० ववसाय-विणय-साहस-धरहो चेद्विउ सुणेवि विणयंधरहो । ख पराहिवु निय-मणे विम्हियउ नेहेण य सो आलिंगियउ । देविहि वयण-कमलु अवलोइवि भणइ नरिंदु एरिसं । पेच्छह निच्छएण संजुत्तह विणयंधरह साहसं । ५ अह सामि-चयणु एरिसु सुणेवि जंपइ विलासवइ एउ देवि । सच्चउ विणयंधरु एहु देव अणुहरइ असेसु इमस्स चेव । ता अज्जउत्त कीरउ इमस्स सफल पसाउ विणयंधरस्स । सो पच्छायाव-परद्ध ताउ दीसइ पहु मह अंबा-सहाउ । निच्चं किर जे गुरु वंदयंति चिरयालु देव ते नंदयंति । १० जई वि हु पडिकूलु करंति के वि पणमिजहिं पहु उत्तमेहि ते वि । ता तामलित्ति-नयरीए जाह पच्छा सेयविय-पुरीए नाह । तत्थ वि तुह विरह-करालियाई दीसंति जणणि-जणयाइं ताई । पिय एरिसु किर पंडिय भणंति माया-पिय दुप्पडियार हुँति । ते जइ वि परम्मुह कह वि हुंति कीरइ तं तह वि जमाइसंति । १५ किं तीए सिरीए वि सुंदराए वर पहु पर-मंडले पावियाए । आणंदु न मिस्तहं जा करेइ सत्तूण वि सीसु न दुक्खवेइ । इय कंता-वयणुच्छाहियउ वसुभूइ-मंति-संवाहियउ । निय-जणणि-जणय-उम्माहियउ हूउ खयर-नाहु जत्ता-हियउ ॥ १॥ [२] जंपइ अनिलवेउ एत्यंतरे एरिसु देव जुज्जए । पर पढमयरु चंद लेहाए वि पाणिग्गहणु किज्जए। हउं ताए पेसिउ सिग्धमेव अविलबु पयट्टह तत्थ देव । सुविसिट्ठ लग्गु गणियउं इमीए गुरु-वासरे सुकिल-पंचमीए । ५ तो अनिलवेय-उच्छाहिएण सदाविउ संवच्छरिउ तेण । [१] ७ पु० सफलउ १०. पु. पणुमिज्जइ ११. पु. तो ताम० १३. पु० मायपिय.... होति । १७. ला० कंत चेयणिच्छाहियउ [२] ३. पु०-तत्थ चेव ४ पु० सुक्किल Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001874
Book TitleVilasvaikaha
Original Sutra AuthorSadharan
AuthorR M Shah
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1977
Total Pages310
LanguagePrakrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size17 MB
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