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________________ १५७ १०.६] विलासपईकहा कुवलय-सरिच्छेहि लोयणेहिं सच्छेहिं । कंकैल्लि-तुल्लेहिं हत्थेहिं अमुल्लेहिं । थल-कमल-हरणेहिं मुसिलिट-चरणेहिं । मिउ-कुडिल-चिहुरेहि नं मिलिय-भमरेहिं । सव्वंगट्ठिय-सोह जण-जणिय-मण-मोह। १५ मुत्ताहल-मणि-रयणाहरिय उवरि पुण धवल-पडावरिय । दिन्नउं मुह-वड-फेडावणिउ साली-पमुहाहिं य ज भणिउ । उभय-दिसाहि साहि उग्घट्टिय गाइय विविह-मंगला । तहि लग्गम्मि पवरि मणि-गम्भिय जोडिय ताण करयला ॥५॥ अह वहुय लेवि दाहिण-करेण बहु-तूर-सह-मंगल-सरेण । मरगय-मणि-खंभ-समाहियाए जरढामल-विदुम-वाहियाए । उल्लोय-दुस-अद्धासियाए नाणा-मणि-रयणुब्भासियाए । वर-कणय-विणिम्मिय-भंडयाए वुस-इंदनील-किय-दंडयाए । ५ मोत्तिय-अवऊल-विराइयाए सुर-भवण-सरिच्छए वेइयाए । आरूढउ पहु अइ-गरुय-तेउ सूरो व्व दिवस-लच्छी-समेउ । एत्यंतरे जलणु पुरोहिएण पज्जालिउ लाया-महु-घिएण । अह मंडलाइं बहुया-सणाहु आढत्तु भमेविणु खयर-नाहु । मंडले पहिल्ले अघडिय-सुवण्णु दस-कोडिउ बहुताएण दिन्नु । १० दइयइ मणि-मोत्तिय-कणय-सारु आहरणु दिन्नु नाणा-पयारु । थालाई रच्छ तिज्जइ समत्थ मंडले चउत्थे सुमहत्थ वत्थ । गय-हय-विमाण-सयणासणाई रयणइं रोगाइ-पणासणाई। । सन्नाहावरण-वराउहई वहु-ताएं दिन्नई बहुविहई। अब्भुदयम्मि तम्मि निय-कंतह ईसा-रोस-वज्जिया । १५ देवी सई विलासवइ तोसेण वद्धावणई नच्चिया ॥ ६॥ [५] ११. ला० अमोल्लेहिं [६] ६. ला० दिब-लच्छि ११. ला० रत्थ तिजइ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001874
Book TitleVilasvaikaha
Original Sutra AuthorSadharan
AuthorR M Shah
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1977
Total Pages310
LanguagePrakrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size17 MB
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