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________________ १५८ साहारणकइविरइया [१०७ बहु-खज्ज-पेज्ज-भोज्जेहिं सणाहु कुसलेहिं ताव वित्तउ विवाहु । तो वज्जबाहु-पुर-सामिएण वीसज्जिउ खयराहिवइ तेण । सम्माणु सयल-हड हं करेवि दोन्नि वि देवी उ विमाणि लेवि । सहुँ अनिलवेय-विणयंधरेहि वसुभूइ-पमुह-विज्जाहरेहिं । ५ छायंतु नहंगणु रिद्धि-जुत्तु तो तामलित्ति-नयरिहिं पहुत्तु । तो पेच्छवि जपहि नयरि-लोय । कि आवहिं देव महंत-भोय । पेसिउ विणयंधर अनिलवेउ दिट्ठउ नरिंदु अह भणिउ एउ । तुहुं बद्धाविज्जसि अज्जु देव सकयत्थउ तिहुयणे त सि चेव । खयराहिषु पेच्छहि सपरिवारु तुह घरे संपत्तु सणंकुमारु । १० निय-पुण्णेहि गेहिणि जासु हय आइय विलासवइ तुज्झ धय । अह कण्ण-रसायणु तं वयणु निमुणेवि पुलइप-सयल-तणु । ईसाणचंदु पहु उटियउ विणयंधरु दिट्ठ आलिंगियउ । पच्छा अनिलवेउ आलिगेवि नरवइ परम-हरिसिउ । जंपइ साहु साहु विणयंधर जं महुं एहु दरिसिउ ॥७॥ तुहं सच्च-पदण्णउ इय भणेवि परिओस-दाणु अह ताण देवि । आइट्ठ महंत नराहिवेण सज्जह हय-गय-जाणइं खणेण । आएसाणतरु सयलु तेहिं संपाडिउ सिग्घु महतएहिं । बहु रिद्धिहि अंतेउर-सहाउ सम्मुहु नीसरियउ तस्स राउ । आसण्णउ जाव नरिंदु पत्तु तो तेण विमाणु झड ति चत्तु । खयराहित्रु नमइ निवस्स जाव दोहि वि करेहि सो धरिउ ताव । भणियेउ न पुत्त तुहु एहु होइ तुहुँ एक्कु पणामह जोग्गु लोइ । ते भणिउ म जंयह एउ देव गुरुटाणे नमिज्जसि तं सि चेव । सो भणइ पुत्त किह गुरु हवेमि विणिवाउ तुज्झ जो चिंतवेमि । १० खयराहिवु भणइ न तुम्ह दोसु निय-कम्मह उप्परि ताय रोसु । [७] ६. पु० ते पेच्छेवि जंपेहिं ७. पु० विणयंधरु ९ पु० संपत्तउ १०. ला०-पुन्नेहि [८] ३. पु. संपाडिउ सयलु महं० १०. पु० तुज्झ दोसु Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001874
Book TitleVilasvaikaha
Original Sutra AuthorSadharan
AuthorR M Shah
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1977
Total Pages310
LanguagePrakrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size17 MB
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