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________________ १०.१०] ५. नरनाहु पपइ पणमियउ न वियारिउ किं पि हियाहियउ विलासवई कहा पाएहिं लग्गेवि अणंगवइ हुं पुत्त सुलक्खण सील-जुउ सत्ताहि तुहु कुल-मंडणउ उवसम पहाणु सुपुरिस हव सपुर अणागउ चितव सुपुरिस-चित्तई थिर-सोहियई सुपुरिसु न पुत्तनिधिणु कर ता जोव्वण-मय- उम्मत्तियए मई तइयहं तुम्ह जं कियउं १० जं अलिउ आलु तुम्हं घडियं ता पच्छायाव - परद्धिय पणयाण पुत्त तिहुयण - तिलय एवं बहुप्पयारु जंपेविणु देवि-नरिंद सम्मुहु तो जंपइ करहि पसाउ पुत्त महु उप्पर पच्छायाव - दद्धहो । पर्णामि एहु तुझ पय-कमलेर्हि पुण्णेहिं कह वि लद्धहो ॥ ८ ॥ [s] [20] उहि देवि मई खमिउ एउ मा करहि विसाउ तुमं पि देव परमत्थें दोसु न तुम्ह कोइ पुव्व-कय-कम्म-फळ परिणमंति ५ जणणी जणया वि हु आवइए जणणी - जंघा विहुवच्छयस्स Jain Education International पुत्तय खमेहि जं मई कियउ । महिला-वयहिं विमोहियउ । 2 पवत - नयण एरिस भणइ । महिलाणु होइ विवेय-चुउ । महिलायणु कुल विइ-खंडणउ । महिलाणु रोसु न जीवइ । महिलहे पुणु पच्छा होइ मइ । afrat हवंति महिला - हियई । महिलायणु सन् समायर । तह मयण - रूव - अक्कंतियए । तं सब्बु खमेज्जसि दुक्कियउं । तं पेच्छ पुत्त मज्झ वि पडियं । महु खमहि स दुह दद्धियहे । सप्पुरिस होंति करुणा - निलय | सम्भावेण खामिउ | विज्जाहरहं सामि ॥ ९॥ [2] ११ पु० खामहि १२.ला० न वियाणिउ पु० महिलायणेहि [९] ८. ला० जोठण - मयणुम्मत्तियए... ९. पु० सई नइयह क्रिययं......दुक्किययं । [१०] २. पु० पुब्बिं ६. ला बंधणु अवस्स १५९ को करइ रोसु जसु मणि विवेउ । पूव्वं पि खमिउ मई सव्वमेव । जीवहं भविrog अवस्स हो । पर पर निमित्त - मेत्तई हवंति । कारणु व कम्म गइए । भत्तु घर बंधणे अवस्स । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001874
Book TitleVilasvaikaha
Original Sutra AuthorSadharan
AuthorR M Shah
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1977
Total Pages310
LanguagePrakrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size17 MB
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