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सा भइ विउ एयारिसे सु इय का विवेकीलहिं गमेवि पण विणु तो नरवर सुयस्स त दिन्नउ कंठ भुवण सारु सुंदरि घरु तुहु अप्पणउं एउ १० जो सामि तुम्हे आए देहु
साहारणकविरइया
[२७]
पाहुडहिं महंतेहिं पेसिज्जतेहि निव्भर-पेम्म-परायण । कइय विदिण वोलिय आस-महेलिय विहिय हियय-साहारणहं ॥२७॥ [इ] विलासवई कहाए पढमा संधी समत्ता ||
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अच्छरिउ होइ न य सज्जणेसु । बहु सपरिहासु बक्करु करेवि । चल्लि अगसुंदरि घरस्स । पडिवत्ति करेवि जप कुमारु । आगमणि करेवउ ता न खेउ । इय भणित्रि पहुत्तिय नियय-गेहु ।
८. पु० करिवि ९. ला० आगमणे १०. ला० तुम्हि पु० भणेवि
[१. २७
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