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________________ ९.५] विलासवईकहा ५ भो भव्वहो भव-सायरे अपारे घण-कम्म-नीर-कल्लोल-फारे । उढत-मोह-आवत्त-दुग्गे बहु-दुक्ख-लक्ख-जल-जीव-उग्गे । निवडिय-बहु-जोणि-नई-पवाहे नरयाऽनल-वडवानल-सणाहे । संजोय-विओय-तरंग-भंगे मणुया-ऽमर सुह-मणि-रयण-संगे । विस-विसम-विसय-उल्लसिय-सप्पे विस्थरिय राग-विदुम-कडप्पे । चउगइ-महंत-वेलाउलम्मि कोहाइ-वेत्त-वण-संकुलम्मि । एरिसम्मि संसार-सायरे बहुविहाण दुक्खाण आयरे । उत्तरंति कह निवडिया जिया जाणवत्त-सम-धम्म-वज्जिया ॥४॥ १० च तं विविह-विरइ-कठेहिं घडिउ सम्मत्त-निबिड-बंधेहिं जडिउ । जुत्तउ तव-कूवाखंभएण आऊरिउ नाण-महासिढेण । तं पंच-महव्वय-रयण-सारु उवरि द्विय जिणवर-कण्णधारु । वाहियइ नियम-आवेल्लएहिं चालिज्जइ गुरु-निज्जामएहि । ५ तहिं कम्म-नीरु छिद्देहिं पविठु आलोयणाहिं कीरइ अदिदछु । दस-विहु पच्छित्तु वि मयणु तत्थ नाइज्जइ छिद्द-पवेसु जत्थ । तं भरिउ मिट्ठ-उवसम-जलेण सीलंग-सहस्स-सुसंबलेण । आगारह अववायह पयाई मुच्चंति काले तर्हि नंगराई । जिण-मुणि-साहम्मिय-भत्ति-राउ अणुकूलु निच्चु तहिं वहइ वाउ । १० नक्खत्तेहि वेप्पइ तत्थ कालु सज्झाय-तूरु वज्जइ वमालु । इंदियाई निजिणिवि चोरया मयरके उ-मय-मच्छ-मयरया । परिहरेवि मिच्छत्त पव्वए सिद्धि-वस हि पर तोरु पावए ॥५॥ एहु माणुस-जम्मु वि रयण-दीवु धन्नो च्चिय पावइ को वि जीवु । जो पंच-महव्वय-रयणु लेवि जिण धम्म-पोए तहिं आरूहेवि । [४] ७. ला०-चहु-जोणि[५] ३. ला. उवर ट्ठिय ४. ला० आवल्लएहिं, पु० वालिज्जइ ५. ला. छिद्देहि ६. पु० दसविह, ला• पच्छित्तो, पु० लाइज्जइ छिटु ७. पु०-सहस्स-सुयं वरेण १०. ला० घिप्पइ [६] २. पु. धम्मु-ला-धम्म--पोइ १८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001874
Book TitleVilasvaikaha
Original Sutra AuthorSadharan
AuthorR M Shah
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1977
Total Pages310
LanguagePrakrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size17 MB
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