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________________ 24 १० साहारणकइविरइया [४. २३ पट्टाविय तो मई मुणिकुमार सव्वत्थ मुणिय-काणण-वियार । ५ तुझं च्चिय अन्नेसण-निमित्तु जोवेह सयल-काणणु विचित्तु । अहमवि य पुराण-कहा कहंति ठिय तीए पासि परिसंथवंति । अह वणु भमेवि पच्चागरहिं मह साहिउ साहु-कुमारएहिं । जिह सयल वि वण-काणणु गविठ्ठ सो पुरिसु न अम्हहिं कहिं वि दिछु। मई चिंतिउ पुत्त करेमि काइं पर-कज्जइं होंति सुसीयलाई । सच्चं चिय किर वणु होइ जस्स सो चिय पर जाणइ पीड तस्स । तो राय-पुत्ति परिसंथवेवि परियणु वि तीए सन्निहि धरेवि । जीवियह उवाउ न अन्नु कोइ किल काल-विलंबि एत्थ होइ । सयमेव चलिय काणणु विचित्तु तुम्हहं कुमार जोयण-निमित्तु । तमवस्सकज्ज-करणुज्जयाए दंसिउ तुहुं महु भवियव्वयाए । १५ ता एहि सिग्घु आसम-पयम्मि अच्छइ विलासवई दुहिय जम्मि । सा दड्ढिय विरह-हुयासणेण पर सुहिय होइ तुह दसणेण । कन्नहे तीए अबंधवहे अन्नु न किंचि वि जीविय-कारणु । तो कंठट्ठिय-जीवियहे करहि कुमार पाण-साहारणु ॥२३॥ ॥ इइ विलासवई-कहाए विज्जाहर-संधी चउत्थिया समत्ता ॥ [२३] ५. पु० काणण विचित्त ८. पु० प्रह, ला० सयल...अम्हेसिं ९. ला० हुंति १२. पु० जीवियहि...को वि, ला० न एत्थ १६. ला० तुहु १७. ला० ___ कन्नहि १८. पु० -जीवियहि....सहारणु. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001874
Book TitleVilasvaikaha
Original Sutra AuthorSadharan
AuthorR M Shah
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1977
Total Pages310
LanguagePrakrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size17 MB
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