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________________ संधि - ५ [१] एरिसु वयणु सुणेवि तावसि-उवइट्ठउ । पाविउ रयण-निहाणु नावइ मणि तुट्ठउ ॥१॥ अह सो कर जोडि वि इय भणेइ कीरइ जं भयवइ आणवेइ । तावसि अणुमग्गिं चल्लियउ तहिं दिव्व-तवोवणि पावियउ । ५ पढम पि पइद्विय तावसिया तो तीए विलासवई भणिया । उहि विलासवइ पुत्ति लहु आइउ दुवारि सो कंतु तुहु । तो रुट्ठिय भणइ विलासवई वेयारहि भयवइ काई मइं । जो किर सुमिणम्मि वि दुल्लहउ सो किह पाविज्जइ वल्लहउ । इय जाव न बालिय पत्तियई सन्निउ कुमारु तो पविसरई । १० उवणीउ तस्स आसणु पवरु उवविठ्ठ तत्थ सहरिसु कुमरु । तो तेण पलोइय राय-सुया अइ-सिसिर-मुणालिय-हार-जुया । ओल्लरिय नलिणी-दल-सत्थरए सविसेस विहिय कामज्जरए । अह सा कुमरु निएवि सयणीय उठ्ठिय । अभिंतरि वेगेण लज्जाए पइट्ठिय ॥१॥ तो तावसीए आसम-उचिउ कुमरस्स अग्घु सुंदरु विहिउ । तावसि चयणेण मराल-गई जल गिहिवि पत्त विलासवई । संठविय-सिहिण-वर-वक्कलया सव्वत्थ वि जोविय-दिसि-वलया। लज्जाए वलिय वियसिय-नयणा कुमरस्स तीए धोविय चलणा । ५ एत्थंतरि खर-किरणो तरणि गयणह मज्झ ठिउ दिवस-मणि । तावस-लोएण य तत्थ खणे किउ सयल वि नियय-निओउ वणे। १] २. ला. पावेवि रयण-निहाणुं नावइ मणे ३. ला जोडवि... भणइ...आणवइ १. पु० अणुवग्गिं, ला. तवोवणे ५. पु०पइट्ठिया ८. पु. सुवणम्मि १०. ला उवइठु १३. पु० नियवि [२] २. ला• गिण्हेवि ५. पु० एत्यंतरे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001874
Book TitleVilasvaikaha
Original Sutra AuthorSadharan
AuthorR M Shah
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1977
Total Pages310
LanguagePrakrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size17 MB
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