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________________ ६० आणीय फणसाइय-फलई तो पाण-वित्ति सव्वेहिं किया भो रायपुत्त तई जारिसह १० फल- मूल - वित्ति वक्कल-वसणो तं हविलासवई दुहिया पुव्यहिं दिन्निय विहिणा वि सई १० साहारणकविरश्या अह सा कुमरेण इमं भणिया संसार- सरू मुणेहि सई ता ता - कन्नई ढोविययं अंतेण पमज्जिउ वक्कलहो ५ अह विहिणा पज्जा लिउ जलणो तावसि एउ भणेवि सोयाउल - चित्तिय । वक्कलि वयणु वेवि रोएवि आढत्तिय ॥ २ ॥ [3] सानियाहरण-- विहूसियया ते विसा पढमं गहिय मणे भमियाई असेसई मंडलई तावसि - आपसि सुत्थियइं जहिं अणेय पायवा असोय-आरु- आमला कथंब - उंब - उंबरा Jain Education International [ ५.४ आहरियई वर- निज्झर - जलइ । एत्यंतरि जप तावसिया । ss तास - आसमे आगयहं । किंगर कुणइ तवस्सि - जणो । मह पाणE पासह वल्लहिया । एवहिं संपाडिय तुज्झ मई । भवइ सयमेव सयाणिइया । तो कि आढत्तउं एउ तई । farer सलिल मुहु धोविययं । पुणु तावसि उट्ठिय आसणहो । हक्कारिउ स वि साहु-जणो । कुमरस्स करम्मि समप्पियया । पच्छा करयलि पस्सेय -घणे । पणमिय भयवइ तावसि कुलई । उज्जाणि मनोहरि पत्थियई । सुंदरवणु नामेणं उज्जाणु रचणउं । दिउं दोहिं वि तेहिं आसम - आसन्न || ३ | [४] निसिद्ध-सूर-आयवा । अवाड - से दि-सिंबला । कसेरु किंपि केसरा । ते [२] ७. पु० आणिवइ फलपाइ० ८. ला०कया १०.ला० गउरउ कीरइ ११. पु० [३] २. ला० –सरूव ३. ला• कन्नए ढोवियं... धोवियं ६. पु० संनिययाहरण - ९. ला० उज्जाणे मणोहरे ११. ला० दिट्ठ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001874
Book TitleVilasvaikaha
Original Sutra AuthorSadharan
AuthorR M Shah
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1977
Total Pages310
LanguagePrakrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size17 MB
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