SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 248
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १०.२७] विलासवईकहा कुंकुम - कप्पूर-कुरंग-गंधु वच्चंत चेडि अच्चंत -हासु ५ हीरंत-पोत विहसंत- मित्तु परिपुण्ण मासि तो बालयस्स एवं च महाबलु अइवलो य उत्पन्न पुत्त पंच वि सुरूय पढमं विसालबलु धिइबलो य १० एवं अन्नाण वि राणियाण इय जणणि जणय अंतेउरेहिं संपुण्ण मणोरहु विगय- भउ मच्चंत भिच्च नच्चण-पबंधु | तरलंत तरुणि वडिय -विलासु । Jain Education International इय मणहरु वद्धावणउं वित्तु । अजियबलु नाम संठविउ तस्स । अतुलबल नाम अगणियबलो य । अह चंदलेह - देवीए हूय । सत्तीबलु तह साहसबलो य । उप्पन्न पुत्त सव्वहं पहाण | मित्तेहिं य पुत्तेहिं सुंदरेहिं । सो कालु न याणइ को विगउ । तं निय-बंधु - मित्त-साहारणु भुंजइ पुत्र- पुण्ण आवज्जिउ || इ विलासवई - कहाए जणय-समागमो नाम दसमा संधी समत्ता ॥ सई वज्जिय अकज्जयं । विज्जाहरहं रज्जयं ॥ २७ ॥ [२७] ४. पु० - चेडिय ६ ला नाउं संठविय ९. ला० पढमउ वि० १७१ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001874
Book TitleVilasvaikaha
Original Sutra AuthorSadharan
AuthorR M Shah
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1977
Total Pages310
LanguagePrakrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy