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________________ १७० साहारणकइविरइया [१०.२६ विज्जाहरु अजियबलप्पहाउ निज्जिय-अणंगरइ परम-राउ । २५ निब्भउ विलासवइ-कंतु चेव लोयप्पिउ न तुहुं को मुणिसु देव । हसिऊण भणियं----मुणीसो ॥ एवं च विविह-पण्होत्तरेहिं वुड्ढा पहेलिय अंतक्खरेहिं । अक्खर-बिंदुय-मत्ताचुएहिं अच्छंति विणोएहिं अब्भुएहिं ॥ कइय वि वर-विमाणु विरएविणु नंदणवणेहिं बच्चए । ३० कइय वि मलय-सिहरि हरियंदण-अंदोलणेहि नच्चए ॥२५॥ [२६] कइय वि पेक्खणय-निरिक्खणेण कइया वि कहाणिय-अक्खणेण । कइय वि गोटिहिं सुवियस्खणेण कइय वि य रज्ज-चिंतक्खणेण । कइया वि सुद्ध वाएइ वीण कइया वि मज्झि चिट्ठइ कवीण । कइया वि मंति पुच्छइ पवीण कइया विरयइ कणयच्छवीण । ५ कइय वि पुण बहु-सोहग्गएहिं पण्हेहिं कलत्तेहि सोहणेहि । पढणा-ऽऽहरणेहिं सुहासिएहि मित्तेहिं समुद्देहि मंदिरेहिं । कइय वि पुण कीलइ सुरयणेहिं बुह-मुह-कव्वं-सुय-भूसणेहिं । कइय वि दीणाइहिं देइ दाणु कइया वि कुणइ वइरीण दाणु । कइया वि विहिय-गमणो रहेण मित्तेहिं सहुं ललइ मणोरहेण । १० ताउ वि विलासवइ-चंदलेह कीलंति परोप्परु घण-सिणेह । पंचविह-भोय-मुंजंतयह मुविसाउं रज्जु करंतयह । देवी विलासवइ अंगरूहु संजणय जणय-जण-जणिय-सुहु । पुत्तह जम्मि तम्मि अइ-रम्मउं वद्धावणउं कारियं । बंधण-मोयणाइ दीणाइहिं दाणु तहा अणिवारियं ॥२६॥ उद्दाम-सदु बंदिण-विमदु मद्दल मउंद-आनंद-सद्दु । उल्लसिय-मल्ल पेल्लिय-पमल्लु तंबाल-पूर-पूरिय-मुगल्लु । [२५] २८. पु० विणोयहिं अच्चुएहिं [२६] ३. पु० मज्झे ९. ला०-मगोहरेग ११. ला० सुविसालं रज्ज--१२. पु० संजइ जणय-१४. ला० तहा निवारियं । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001874
Book TitleVilasvaikaha
Original Sutra AuthorSadharan
AuthorR M Shah
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1977
Total Pages310
LanguagePrakrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size17 MB
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