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१७४ साहारणकइविरइया
[११.५ छुब्भहिं वेयरणी-नइ-पवाहे डज्झहिं नरयानल-घोर-दाहे । एमाइ दुहत्तहं नरय-लोइ किह धम्म-बुद्धि नार यहं होइ । पायाले सत्त-पुढवी-ठियाहं जाएवि धम्मु को कहइ ताहं ।
जइ पुव्व-पत्त-सम्मत्त के वि जाणंति ओहि-उवभोगु देवि । १० अह पुव्व-नेह पडिबधु होइ बलभद्ददेउ जिंव कहइ कोइ ।
ता नारय-सत्तहं बहु-दुक्खत्तहं सुविसिटउ खयराहिवइ । संसारुनारणु दुक्ख-निवारणु धम्मक्खणु किह संभवइ ॥४॥
तिरियहं वि कुजोणिहिं पत्तियाहं अण्णाण-मोह-बस-वत्तियाहं । भय-दुक्ख-निरंतर-पूरियाई किह धम्म-बुद्धि जायइ जियाह । पुढवी-जल-जलणानिल-वणाण पंच-पचार एगिदियाण ।
बेइंदिय-तिइंदिय-चउरिदियाण समुच्छिम तह पंचिंदियाण । ५ एयाण ताव न मणं पि होइ गब्भयह चेव मणु तिरिय--लोइ । ताण वि न तहाविह का वि बुद्धि आहार-निद-मेहुणेहि गिद्धि । गम्मागम्माई न ते मुणंति भय-दुक्खहिं पीडिय किं कुणंति । न परिच्छहि भासिउ माणुसाण ता धम्म-विवेउ न होइ ताण ।
जइ पर जाइस्सरणुब्भवेणं अहवा सुनाणि-मुणि-दसणेणं । १० सम्मत्त-मेत्तु के वि लहंति तह देस-विरइ विरला कुणंति ।
ता बहु--भेयहं नट्ठ-विवेयहं सव-कालु दुह-भरियहं । वर-धम्माराहणु मोक्खह साहणु किह संपज्जइ तिरियहं ॥ ५॥ आहार-निदा-भय-मेहुणाई माणुसहं वि तिरियाण वि समाई । अब्भहिउ धम्मु पर माणुसाण सो जाह नस्थि ते पसु-समाण । जे देसे हि होति अणारिएम सुह-धम्म-बुद्धि किह होइ तेसु ।
आरिय-देसम्मि वि को विसेसु जे हुय मेच्छाइमु दुक्कुलेसु । ५ सुकुलाम्म वि उप्पज्जहिं कुरूय वाहिल्ल हुंति बहिरं-ऽध मय । [४] ६. पु० नरमानले घोरडाहे [५] ४. पु० बिंदिय-तिदिय-चउं... पंचेदियाण । ६. ला० आहार-निंद.. [६] २. पु० अब्भहिउ धम्म ३. ला० जे देसहिं हुति...होइ तस्सु ।
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