SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 194
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ८.७] विलासवई कहा रोवंति नारि मोक्कलिय-केस नरु महिसारूढ दंड- हत्थु ५ दाहिणई दुक्खु अक्खिर खरेण कालउ कुरंगु गाउ पंगुरंतु चिरि चिरि सरेण दाहिणिय साम तह सुक्क- रुक्खे पंखउ धुणेइ भे भेत्ति दंति भल्लय भसेइ १० सव्वहं किलेस साहिउ ससेण इय सामि अणि बहु दिई अवसई सो तह वि पहु । अवमन्नेव चलियउ निय-बल-कलियउ संछायंतउ गयण-पहु ॥७॥ [4] एवं च अणंगरई -बलम्सि वेगेण देव संपत्त अम्हे इय सुणेवि कुमारे दिन्न आण ताडेह सिग्घु संगाम भेरि ५ आए साणंतरु तखणेण अहसा व पवज्जिय घण-सरेण वज्जप्पहार - फुल्याण दस - दिसि भरंति पडिसएहिं तो भेरी-सह-पडिवोहियाण १० जय - लच्छि समागम - लंपडाण ११७ तसु समुह हूय मल-मलिण- वेस | कट्ठाण वि भारउ अपसत्थु । दाहिण -दिसि वासिउ कोसिए । हिदंतु पंथु फणि विष्फुरंतु । कर करण कराइय करइ वाम । दाहिण - दिसि वायसु करकरे | दाहिणिय चिल्ल - तित्तिरु रसेइ । एक्कल्ले कुरुलिउ सारसेण । Jain Education International सव्वम्मि वि नीहरमाणयम्मि । एरि जाणेवि पमाणु तुम्हे | पासद्विय विज्जाहर भडाण । आसन्न व मज्झ वेरि । हय समर भेरि भासुर -भडेण । हुंकारु नाइ मुक्कउ जमेण । उच्छालिउ सहु न पव्वयाण | नं पलय- कालि गज्जिउ घणेहिं । तह समर -कज्जि साहस - रसाण | उउि कलयल - वर-भडाण | के वि हहिं सत्थई बंधहिं भत्थई के वि काए कवयई करहिं ! के वि सज्जहिं जाणई पवर-विमाण के वि आवास संवरहिं ॥८॥ [७] ४ ला महिसारूडओ दंड हन्यु ५ पु० अक्खिओ ६. पु० काएण कुरंगु ८. ला० पंखओ, पु० लुणेइ ९. ला० मेव्भत्ति दिति भल्लुय.. चिल्हं.... १० ला एकल्लि [4] १. ला वोहरमाणयम्मि २. ला० सुगवि कुमारं ५. ५० हय भेरि समर भासुर७. पु० वज्जपहारु ९. पु० मेरि - सद्दि.. सहिसरहसाण । ११ ला० बंधई १२. ला० संवरिहिं । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001874
Book TitleVilasvaikaha
Original Sutra AuthorSadharan
AuthorR M Shah
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1977
Total Pages310
LanguagePrakrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy