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________________ प्रस्तावना अहीं आवती अनेक वानगीओमांथी मोटा भागनी अत्यारे पण गुजरातमां प्रचलित छे. भोजन पछी तांबुल पान खावानो रीवाज घणो जूनो छे. आभ्रंश काव्योमा घणीवार 'सवाण तंबोलु ' ( सवर्णक ताम्बूल ) नो उल्लेख जोवा मळे छे. तंबोल - नागरवेलना पानमां वर्णक एटले सुगंधीदार मसालो नाखवामां आवतो. विलासवई कहा मां नायिका विलासवतीए तेना प्रिय. तम सनतकुमारने आयुं पान बीजा उपहार साथे मोकल्यानुं वर्णन छे. (१.२६ ) ते पानमां कक्कोल, एलायची, जाईफल, कपूरवेलोना पान, सोपारी इत्यादि नाखेल हतुं अने जे नवा खेर अने केरीना स्वादवाळु हतुं. मित्रोनी मिजलसमां पण तांबुल आपवानों रीवाज हतो ( ९. १० ) एक जगाए पंचवासु तंबोलु ( पांच प्रकारना सुगंधि पदार्थोवाळु पान ) नो उल्लेख पण छे. ( १. २४) धर्मः - ४७ ते काळे लोको धार्मिक आस्थावाळा हता. अनेक लौकिक देवताओनी पूजा प्रचलित हती. शैव संप्रदायना जोर साथै ज गुजरातमां जैनोनो श्वेताम्बर संप्रदाय बळवान बनी रह्यो हतो. हेमचन्द्राचार्या समय सुधीमां तो एणे राज्याश्रय पण प्राप्त करी लीधो हतो. साधारण कविए महादेव ने बीजा लोक - प्रसिद्ध देवताओनां शिथिलाचारनी निन्दा करी छे, ( ११.२९) ते शैवो अने सनातनीओ साथेना जैनोना विरोधन सूचन करे छे. चमत्कारिक गणाता देव-देवीओ थी लोको डरता महाकालीदेवीना प्रक्रोपनी वात तेनु उदाहरण छे. (७.७) अशांति निवारण माटे बलि चडाववानुं, यज्ञयागोनुं अने सिद्धायतनोमां पूजोपचारनु वर्णन (७५) सामान्य जनोमां प्रचलित क्रियाकांडनी महत्ता दर्शावे छे. संसार त्याग करनारा साधु-सन्यासीओनुं लोकोमां बहुमान हतुं दीक्षार्थी प्रत्ये लोको अहोभावथी जोता. Jain Education International जैन उपदेशको देशकाळने अनुसरी सामान्य जनोने उपदेश आपवा माटे भय अने प्रलोभननो शैलीनो उपयोग करता धर्मपालनथी थता अलौकिक भौतिक लाभो अने स्वर्गीय सुखो तथा धर्मविमुखताथी थती हानि अने नरकनी यातनाओना कल्पनासभर चित्रो, इतर तत्कालीन कृतिओनी जेम विलासवई कहामां पण देखाय छे. (९.५-८) जैन तीर्थोमां शत्रुंजयनं अत्यंत माहात्म्य हतु (११.३८) वारतहेवारे लोको नगरना बघा देवळोनी यात्रा करता. (१.६ ) ज्योतिष, नैमित्तिकोनी भविष्यवाणी अने शुकन अपशुकन: ते काळे लोकमानस आज करतां विशेष वहेमी अने शुकन अपशुकनमां माननारुं हतुं. ज्योतिषनी तो वे लबाला होय तेम जणाय छे, पुत्र जन्म, लग्न, दीक्षा वगेरे प्रसंगमां ज्योतिपीओने पूछीने निर्णय लेवामां आवतो. सनत्कुमारना जन्मसमये सांवत्सरिकाए तेना विद्याधरचक्रवर्तीवनी आगाही करी दीघेली (१.३) सनत्कुमारना चंद्रलेखा साथेना लग्ननुं मुहूर्त कविए --पोतानुं ज्योतिष ज्ञान दर्शावतां - विस्तारथी वर्णव्युं छे. (१०.२) विलासवई कहामां देखाती ते काळनी शुकन अपशुकननी मान्यताओ हजु ये केटलाक अंशे भारत ने खास करीने गुजरातमां देखा दे छे. विनयंधरने जुदा जुदा प्रकरनी छोंको द्वारा सनकुमारनी निर्दोषता समजाई गयेली (२.१४-१८). छींक उपरथी शुकन अपशुकन जवानुं आखुं एक शास्त्र होय तेम लागे छे. एवी ज मान्यता स्वप्नफल विषयक छे. सनत्कुमारने शुभ स्व नवरा स्त्री लाभनो सूचना मळे छे. (३.३१) अनंगरता सैन्यप्रयाण वखते थयेला अनेक आशुनोनी यादी (८.६ - ७) कविना समयमा प्रचलित अपशुकनोनी यादी बनी छे. For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001874
Book TitleVilasvaikaha
Original Sutra AuthorSadharan
AuthorR M Shah
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1977
Total Pages310
LanguagePrakrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size17 MB
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