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विलासवई-कहा आवता वायोमाथी कसाल, शंख, झालर, डमरू, वीगा वगेरे आज पण प्रचलित छे. ज्यारे ढक्का, मुरव, चक्क, अने मद्दल अत्यारे वोसरायां छे.' वनस्पतिः -
___ साधारण कविने वृक्ष-वनस्पति प्रत्ये घणो प्रेम होवो जोईए. एमणे सो उपरांत वनस्पतिना नाम, उद्यान-वर्णनना प्रसंगे गणाव्या छे.' आ बर्ध बनस्पति अक साधे अकठी होवो दुर्लभ छे. परन्तु अहीं उल्लिखित बधी वनस्पति विशाळ भारतमा ए काळे उगती अने जाणीती होवानुं अनुमान करी शकाय. भोजन-समारंभः
. विलासवई-कहामांनुं सनत्कुमारना भोजन-समारंभy वर्णन तत्कालीन कृतिओमां अनोखं ज छे. एमां कविना समयमा खवाता अनेक मिष्टान्न, पक्वान्न अने शाकभाजीनां नामो आवे छे. एक ज टंके जोके ए बधां खवातां होय ते शक्य नथी, परन्तु वर्णन खातर काव्यमां ते बधा एकत्र रजू करवामां आव्यां छे.
देवगुरुपूजन करोने, दानादिक दईने पछी सपरिवार सनत्कुमार भोजन शाळामां जाय छे. सौ प्रथम द्राक्ष, खजूर अने खडहडिय (आ कोई फळ होय तेवु लागे छे, पंदरमी सदी लगभगमा थयेला साधुराजगणिनी 'भोज्यादिनामगर्भिता जिनस्तुति' मां खडहडी नामे खाद्यपदार्थनो बीजा फळो साथे उल्लेख छे) साथेनुं वर्षोलक'- एक मिष्टान्न पीरसायुं. ते खाईने हाथ धोया पछी सेंधव लवण साथेनां सालण (ए कोई मीठामा आथेली वस्तु होय तेवू डा० सांडेसराए नोध्यु छे.) पीरसायां-त्यारबाद काकडी, गाजर, आदु कुंवारनो गर्भ (?), केरडा, करमदां, वांस, आमळा, वेंगण इत्यादिना अथाणां (विविह संघाणयं) पीरसायां. पछी घउं-चोखा अने मगनी दाळना लोटना बनेला, कालागुरु अने हिंगथी सुवासिन, त्रण प्रकाग्ना पापड पीरसाया. ए पछी खांड अने गोळना विविध मिष्टान्न अव्यां. पछी चणानो लोट नाखेला, काशमर्दथी वघारेला रिंगणा अपायां. तिंडिस (?), काचरी, आंबोळिया अने खांडभरेला तुर्डरिया (?) पीरसायां. अनेक प्रकारनी वडी-पट्टवडी, बोरवडी अने वडा-आदुवडा, मरचावडा, खीरवडा, दुधवडा पण पीरसायां. शाकमां कविए कंचणार, केरडा, तर्कारी, फोग, सरगवो, पडोळा, कंकोडा, कारेला, रीगणां, कालिंगडा, काकडी, करमदां, सूरण, टिंट (?) वगेरे नाम गणाव्यां छे. मिष्टान्नमां खांडना घेबर, फेणी, सुंवाळी, कंसार, मुरकी, कोक्करी (?), लापसी, लावणा मोतिया अने सिंह केसरा एवा त्रण प्रकारना लाडु, अढ़ार जातना खाजा अने पछी शिखंड पीरसायो. बधु आरोग्या पछी सुंठ, मरी अने खांड नाखेलु कढेलु तरियुं दूध पीरसायु. अन्ते हाथ-मों साफ करवाना उबटन थी साफ करीने बधाने पानबीडा आपी पछी पोतानु पानबीडुं लईने कुमारे सभास्थानमां बेठक लीधी (८. ३५-३८ ).
१. जुओ परिशिष्ट-७ २. जुओ परिशिष्ट-३ ३. जुओ परिशिष्ट-५ ४. जैन स्तोत्र संग्रह, भा० २, ५. वर्णक-समुच्चय भा० २ पृ० १९९ ६. वर्णक-समुच्चय भा० १ पृ० १८
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