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________________ ८. २५] विलासवईकहा धावंति तुरंगम खवखवंत मय-मत्त महा-गय गुलगुलंत । विविहाउह-कर दारिय-सरीर वच्चंति वलंत खलंत वीर । १० अणुकूल-पवण-परिपेल्लियाइं गयणेण विमाणइं चल्लियाई । विज्जाहर वासई विविह-विलासई अवलोयंतु कुमार-वरु । वेगेण पहुत्तउ बल-संजुत्तउ पेच्छइ रहनेउर-नयरु ॥२५॥ [२६] जहिं नाणा-मणि-रयणेहि समेउ पायारु कणय-निम्मिउ सतेउ । जहिं उज्जल-रयण-विनिम्मियाई सुर-लोय सरिच्छई हम्मियाई । बहु-भंड-भरिय-संपय-समग्ग रायति मणोहर हट्ट-मग्ग । रम्मई विसाल-धवलुज्जलाई गयणग्ग-विलग्गई देउलाई । ५ फल-कुसुम-समिद्धई काणणाई सोहंति नाइ नंदणवणाई । जहि एक्कई चेव जलासयाई सर-वावि-कूव न य माणुसाई । दोणि य हवंति सुमणोहराई आरामई कामिणि-विलसियाई । जहिं बहु-सुय तिण्णि वि संभवंति कोडुंबि-सालि-पंडिय न भंति । तिण्णि य कविसीसेहि संकुलाइं पायार-विहारई गिरितडाइं । १० चत्तारि वि जत्थ सवाणियाई तंबोल-हट्ट-सरि-नरमुहाई। सुसराई जत्थ पंच वि सहति घरचीहि-गीय-वर धणु वहति । तं पउर-पयाउलु हरि-कमलाउलु रायहंस-दिय-गण-पउरु । सावएहिं पवन्नउं धरिय-सुवण्णउं सर-वर-काणण-समु नयरु॥२६॥ [२०] तं पुरु पेच्छेवि लच्छिहि भरियउ गयणह सपरिवारु अवयरियउ । एत्थंतरे पुरलोय विणिग्गय कुमरह सम्मुह सव्वि समागय । [२५] ८. पु० धावंतु. ला० गुलुगुलिंत १०. पु० अणकूल [२६] ३. ला०-समग्गु ४. पु० विलास-धवलुज्जलाई ६. पु० सरि-वावि-क्य ८. पु. न भवंति १२ पु० गण -पवरु । [२५] २. ला• कुमर-सम्मुह, पु. सव्वे For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.001874
Book TitleVilasvaikaha
Original Sutra AuthorSadharan
AuthorR M Shah
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1977
Total Pages310
LanguagePrakrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size17 MB
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