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________________ साहारणकइविरइया [६.९ [] कुमरेण कहिउं दस-जोयणेहिं एयह उद्देसह समहिएहिं । झ्य सुणेवि भणिउ विज्जाहरेण जइ एरिसु ता अलमुव्वेवएण । न विवन्नियः तुह पिय निच्छएण तो सायरु पुच्छिउ सो इमेण । किं कारणु किह वा तुहुं मुणेहि अह तेण वि जंपिउ भो सुणेहि । ५ वेयडूढ-महीहर-सेहराए उत्तर-सेढीए मणोहराए । देवोवम-विज्जाहर निवासु पुरु अत्थि गयण-वल्लहु पयासु । तहिं बहु-विज्जाहर-राय-राउ मणि-मउड-किरण-विच्छुरिय पाउ । विज्जा-बल-गविउ गरुय-तेउ सिरि-चक्कसेणु नामेण देउ । इह सिद्ध-खेत्ति पारद्ध तेण वर-विज्जा-साहणु दढ-मणेण । १० सा पुणु अप्पडिहय-चक्क-विज्ज भो सुपुरिस दुक्ख-पसाहणिज्ज । तहि ताव दुवालस-मास चेव विहिणा किय पुव्वहिं पुव्व-सेव । अडयालिसं चिय जोयणाई किय खेत्त सुद्धि सोहिवि वणाई । सव्वहं जीवहं अभउ दयाएवि सत्त दिवस जा हिंस निवारेवि । तो सव्वत्थ धरिय विहियायर नियय-सरीरभूय विज्जाहर ॥८॥ अह सो पहाण-सिद्धिहि निमित्तु एक्कल्लउ चेव सुधीर-चित्तु । निम्मलउ फलिह-मणि-वलउ लेवि पूयाविहाणु सन्निहि करेवि । एत्थेव सिद्धिनि लयाभिहाए __ अच्छइ पविट्ठ मलयह गुहाए । किय मुद्दा-मंडल देह-रक्ख पारद्ध जावु तो सत्त-लक्ख । ५ पूराणि सत्त-दिवसई सुहेहि तसु सरिसई पणइ-मणोरहेहिं । रयणीए इमीए वि वोलियाए तसु विज्ज-सिद्धि होसइ पहाए । मह सामिहि सुह-पुण्णोदएण हउं जाणमि तो इय कारणेण । [८] २. ला० सुणवि, पु० भणियउ ४. पु० किह कारणु...तुहु ७. पु० -किरण-- विप्फुरि-पाउ ८. पु० -गव्विय ९. पु० सिद्धि-खेत्ति [९] ३. ला. मलय-गुहाए ४. पु० जाव Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001874
Book TitleVilasvaikaha
Original Sutra AuthorSadharan
AuthorR M Shah
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1977
Total Pages310
LanguagePrakrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size17 MB
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