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प्रस्तावना
२९
संस्कृत अने तेने अनुसरीने प्राकृत महाकाव्योना जे लक्षणो मनाय छे ते ज सामान्य लक्षणो परंपराथी अपभ्रंश महाकाव्यामां जळवाइ रहेलां जोवा मळे ले. आचार्य दण्डिए महाकाव्यना लक्षणो आ प्रमाणे कह्यां छे___ 'महाकाव्यनी कथा सामा आबद्ध होय छे अने तेनो प्रारंभ आशीर्वाद, नमस्क्रिया के वस्तुनिर्देशात्मक मंगलाचरणथी थाय छे. एनी कथानो आधार ऐतिहासिक कथा या अन्य श्रेष्ठ कथा होय. एनो नायक चतुर अने उदात्तचरित व्यक्ति होय. एमां नगर, समुद्र, पर्वत, ऋतु, सूर्य, उद्यान, जलक्रीडा, मद्यपान, प्रेमोत्सव, मिलन, विवाह, कुमारजन्म, मंत्रणा, दूतप्रेषण, युद्ध अने नायकना अभ्युदयन वर्णन होवु जोईए. उपर्युक्त बधां वर्णनो चमत्कारपूर्ण अने रसयुक्त होवां जोईए. सप्रमाण सर्गोमां भिन्न भिन्न वृत्तान्त के घटनाओनुं वर्णन होवु जोईए. प्रति सर्गने अंते भिन्न वृत्त-छन्दनो प्रयोग थवो जोईए. काव्य अलंकारपूर्ण अने लोकरंजक होवू आवश्यक छे केम के ए गुणो वडे ज ते चिरकाळ लोकोमा प्रचलित रहे. जो कोई महाकाव्यमां उपरना गुणोमांथी कोईनो अभाव होय तो पण रसनी पुष्टि थती होय तो ते महाकाव्य दूषित नहीं गणाय."
आमांना बधां ज लक्षणो विलासवई-कहामां जोई शकाय छे. विलासवई - कहानो प्रारंभ तीर्थकरोनी स्तुतिरूप मंगलथी थाय छे. कथानो आधार एक प्रसिद्ध महाकथा-समराइच्चकहा छे. नायक धीरोदात्त राजपुत्र छे. समुद्र, पर्वत, उद्यान,ऋतु, सैन्य-प्रयाण, युद्ध, दूतप्रेषण, मंत्रणा, नायक-नायिका-मिलन, कुमार-जन्म अने नायकनो अभ्युदय इत्यादि अनेक वर्णनोथी कृति सभर छे. सप्रमाण संधिओ (संस्कृत सर्गने स्थाने अपभ्रंश संधिओ) मां अने कडवकोमा काव्य विभक्त छे. प्रति सर्गान्ते छंद बदलवानो नियम प्रति कडवकना अंते जुदा छंद-प्रयोगमां सचवाई रहेलो जोवाय छे. वर्णनो चमत्कृतिपूर्ण अने रसालंकारथी भरेला तथा कथानक लोकरंजक छे. आम प्रस्तुत कृतिमां महाकाव्यना बधां लक्षणो घटावी शकाय छे.
समराइच्च-कहाथी विशिष्ट अने साधारण कविए पोते ज उमेरेलां एवा वर्णनोमांथी अहीं प्रकृत-वर्गन, अलंकारो आदिना उद्धरणो आप्यां छे, जे साधारण कविनी वर्णनशैली अने कवित्व-शक्तिनो परिचय करावे छे.
प्रकृतिवर्णन- विलासवई-कहामा प्रसंग मळतां ज साधारण कविए प्रकृतिनी विविध लीलाओना सुंदर वर्णनो आप्यां छे. प्रथम संधिमां अनंगनंदन उद्यान- (१.७)अने पांचमी संधिमां सुंदरवन उद्याननुं सुंदर वर्णन (५.४) छे. सुंदरवन-वर्णनमां कविए अनेक वृक्ष-वनस्पतिना नामो आप्यां छे. आवी वृक्ष-राजिथी समृद्ध रमणीय एवा वनने कवि नंदनवननी उपमा आपे छे. वोजी संधिमांनु (३. २२) संध्यावर्णन विविध उत्प्रेक्षाओथी मनहर बन्युं छे. 'राती संध्या नभस्थळमां सोहाय छे, जाणे के नरपति(ईशानचन्द्र राजा) पर क्रोधथी राती न बनी होय ! चक्रवाक युगलो छूटां पडयां-जाणे के कुमारना समसुखदुखिया न होय ! देवळोमां शंखो अवाज करी रह्या-जाणे कुमारना जबाथी धा नाखता न होय ! घरदोवडाओनी वाट संकोराई-जाणे के कुमारने जोवा माटे ऊंची थई न होय ! समग्र नगरी घन अंधकारथी भराई गई-जाणे कुंवरना उद्वेगथी झांखी पडी न होय !'
१. काव्यादर्श- दण्डि, १. १४-२०
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