________________
विलासवई-कहा 'सुणिऊणऽप्पनियाणं महाविवागं च कम्मपरिणामं चित्तंगयविज्जाहरसमण-समीवंमि निक्खतो । किह ? अस्थि इहेव भारहे वासे सेयविया नाम नयरी । तत्थ जसवग्मो राया । तस्स पुत्तो सणकुमाराभिहाणो अहं । .........' एम शरूआत करी स्वमुखे ज आत्मकथा कहे छे. विलासवई-कहा मां आ नायकना आत्मकथानकनी शैली छोडी दईने कवि पोते ज कथा कहे छे.. आ रीते बोजापुरुषमां कथा कहेवाने लोधे कवि नायक, नायिका अने बीजा पात्रोना व्यक्तित्वने यथोचित उठाव आपी शक्या छे.
बलासवई-कहा ना अन्तिम त्रण संधि-नव, दश अने अगियार तो साधारण कवि पोते ज कल्पेला कथानकवाळा अने कविनी मौलिक प्रतिभानो परिचय करावनारा छे.
आठमी संधि सुधीनी कथाना अनुसंधानमां नवमी संधिथो शरू थतुं चन्द्रलेखानुं कथानक (९. १-१८) समराहच्च-कहामां नथी. कथाना प्रवाहने क्षति पहोंचाइया सिवाय साधारण कविए तेने सनत्कुमारनी कथा साथे जोडीने श्रोतावाचकोमा विशेष औत्सुक्र अने रस प्रगटाववानो उत्तम प्रयास को छे. आ ज रीते अ संधिमां आवतुं संसार-सागर अने धर्मनौकानुं रूपक (९. ४-६), पांच महाव्रतरूपी रत्नोनुं वर्णन (९. ६.८), दशमी संधिमां प्रश्नोत्तर-प्रहेलिका (१०.२५), अगियारमी संधिमां वीतराग-वर्णन (११.१९), श्राविका सुन्दरोनु कथानक (११. २३-२५), समराइच्च-कहामां ढूंकाणमां आपेला मधुबिन्दु दृष्टांतनुं विस्तृत निरूपण (११. ७-१२) अने प्रशस्तिमा पोते स्तु तस्तोत्रोना रचयिता तरीके ख्यात छे एवं नोंधता कविनी तद्विषयक ख्याति योग्य हती एना उदाहरणरूप भाववाही पंच-परमेष्ठिस्तोत्र (११. ३२-आ बधा प्रसंगो कविनी नैसर्गिक प्रतिभाना परिचायक छे.
आ रीते केटलाक तद्दन नवा उमेरा कर्या छे ते उपरांत विलासर्वई-कहा नी प्रथम संधिथी ते अंत सुधीमां, समराइच्च-कहामां जे कथा एकदम ट्रंकी हती ते समग्र कथाने ठेर ठेर विगतो भरीने, हकिकतोने संवादनु रूप आपीने, समास-बहुलता अने भाषानी कठिनता दूर करी, श्रोता-पाठकोना हृदयने स्पर्श तेवी रसमय बानीमां मूकोने, लौकिक उक्तिओ, रूढिप्रयोगो, कहेवतो
ओ सुभाषितोथी शगगारीने, जे जे स्थळो समगइच्व-कहा कारे मात्र अछइता उल्लेखथी ज पताचो दीघेला तेवा स्थळोमां पण रससंभार भरीने साधारण कविर विलासर्वईने खरे ज 'पसण्णवयणा' बनाव? छे.
५. महाकाव्य तरीके मूल्यांकन संस्कृत महाकाव्यने ज मळतो अपभ्रंशनो आगवो काव्यप्रकार संधिबंध-चरित काव्यनो छे. संस्कृत महाकाव्य जेम सर्गौमां वहेंचायेलं होय छे तेम अपभ्रंश महाकाव्य संधिओमां विभा. जित थयेल जोवा मळे छे. अपभ्रंश महाकाव्योना खास करोने बे विभाग पाडी शकाय-एक तो पचासथी मांडी सवासो सुधीनी संधि-संख्या धरावता पौराणिक काव्यो अने बीजा बे थी मांडी बार सुधीनी संधि-संख्यामां समाता चरित-काव्यो. प्रथम प्रकारमा स्वयंभूनुं पउमचरिउ, पुष्पदन्तनुं महापुराण वगेरे आवे. बीजा प्रकारमा युष्पदन्तना जसहरचरिउ ने णायकुमारचरिउ, पद्मकीर्तिनु पासणाहचरिउ, वीर कवितुं जंसामिचरिउ, धाहिलनु पउमसिर चरिउ इत्यादि आवे. विलासवई-कहानो समावेश आ बीजा प्रकारमा थाय छे.
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org