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________________ प्रस्तावना आ ते साधारण कविए 'समराइच्च-कहा ' मांथी पोतानी कृतिनुं समग्र कलेवर घड्युं होवाने कारणे 'विलासवई - कहा ' केटलीकवार तो जाणे के प्राकृत 'समराइच्च कहा ' ( पंचम भव) नो शब्दश: अपभ्रंश अनुवाद होय अबुं लागे छे परंतु ज्यां एक बाजु आम कथानकनी दृष्टि साधारण कवि हरिभद्रसूरिना आभारी छे तो बीजी बाजु एमनामां रहेली नैसर्गिक कवि-प्रतिभा एनी आगवी मौलिकता पण दर्शावी शकी छे. आपणे एमनी ए विशेषताओ जोईए. समराइच्च-कहा प्राकृतभाषामां छे अने तेनुं स्वरूप गद्य-पद्य मिश्रित चम्पूकाव्यनुं छे. ज्यारे विलासवई कहा अपभ्रंश भाषामा संधिधमां गुंथायेल संपूर्ण पद्यरूपे छे. गद्य अने ते पण कादम्बरीनी शैलीवालुं होवाथी समराइच्च - कहा समास - बहुलता, शब्दाडंबर अने घणीवार तो क्लिष्टतामां सरी पडे छे. ज्यारे अपभ्रंशभाषानी प्रवाहिता ने कारणे अने कविनी सरळ शब्दोनी पसंदगीने कारणे विलासवई कहा ललित मधुर पदावलीथी जनमनरंजन करवानी अपूर्व क्षमता धरावती काव्यरचना बनी शकी छे. अपभ्रंशना विविध गेय छंदो उपरनुं प्रभुत्व पण विलासवई - कहा ने स्वतन्त्र महाकाव्यनु रूप आपवामां कविने सहायकारी बन्युं छे. 24 पोते नवी ज धर्मकथा रची रह्या होई साधारण कविए कृतिना प्रारम्भमां चोवीस तीर्थकरोनी स्तुतिरूप मंगळ पण पोतानुं स्वतन्त्र आप्युं छे. हरिभद्रसूरिओ समराइच्च-कहामां कथाना १. अर्थकथा २. कामकथा ३. धर्मकथा अने ४. संकीर्णकथा अवा चार भेद पाड्या छे. तथा पात्रभेदनी अपेक्षाए १. दिव्य २. दिव्य - मानुषी अने ३. मानुषी सेवा कथावस्तुना त्रण प्रकार गणाव्या छे.' एमां समराइच्चकहा दिव्यमानुषी पात्रोवाळी धर्मकथा छे. ए ज रीते विलासवई- कहा पण दिव्यमानुषी पात्रोवाळी धर्मकथा छे. परन्तु समराइच्चकहाकारनुं लक्ष्य समरादित्यना चरित्रद्वारा निदान अने तेनुं फळ बताववानुं छे ज्यारे विलासवईकारनो हेतु अल्प प्रमाद - स्वच्छंद पण दारुण विपाकनुं कारणं बने छे ते दर्शाववानो छे. विलासवई - कहाना पहेला संधिना बीजा कडवकमां पोतानी काव्य-रचनानो हेतु जणावताँ कवि कहे छे थेवो वि हु कीरइ जो पमाउ, सो पर भवे होइ महा- विवाउ | एत्थ व पत्थावे कहा कहेमि, ते भव्वहं अभत्थण विहेमि ॥ जिव सह भत्तारं पाण-पियारिं गुरु पमाय- फल अणुहवइ । तिह चोज्जुप्पायणि गुण-सय-दायणि कह निसुणेहु विलासवर || आम साधारण कविए साधारण जनोने सरळताथी धर्मबोध आपवाना उद्देश माटे विलासवती- सनत्कुमारना कथानकनो सफळ उपयोग कुशलताथी कर्यो छे. Jain Education International समराइच्च - कहा (पंचम भव) मां जय-विजयनी कथाना संदर्भमां सनत्कुमारनी कथा कहवाई छे.. राजकुमार जय अश्वक्रीडाए जतां सनत्कुमार नामना अतिशय तेजस्वी मुनिराजर्षि - ना दर्शनथी प्रभावित थई तेमने राजपाट तजो वैराग्य धारण करवानुं कारण शुं एat प्रश्न करे छे, जेना जवाबमां सनत्कुमार आचार्य - १. समराइच्च - कहा (भूमिका). For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001874
Book TitleVilasvaikaha
Original Sutra AuthorSadharan
AuthorR M Shah
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1977
Total Pages310
LanguagePrakrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size17 MB
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