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विलासवई - कहा
ए ज संधिमा ( ३. १५) गिरिनदीनं शब्दालंकारसपर सजीव चित्रण छे. पांचमी संधिमां (५.७) सूर्यरूपी सिंहना किरणरूपी करथी हणायेला अंधकाररूपी हस्तीनुं अने कराळ रविसिंहना भयथी भागी गयेला हरणांरूपी ताराओनुं रूपक बरावतु सुंदर प्रभात-वर्णन छे.
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वे पर्वतानां वर्णनो, वैताढ्य अने मलयगिरिनां क्रमे चोथी संधि ( ४.२ ) अने छट्ठी संधि (६.१) मां आवे छे
'आ भारतवर्षमां सुवर्णरंगनो, सुंदर उपवनो अने कंदराओथी रमणीय, ऊंचा शिखरोथी गगन मार्गने रुंधतो, सकळ वनस्पतिसमूहने धारण करतो, किन्नरोना गीतोथी गुंजतो, बहु रत्नोना किरणथी चमकता तटवाळो, निर्झर झरतां झरणांना झंकारथी भरेलो, मयूरोनी कळाथी मनहर, अभिराम विद्याधरयुगलाने धारण करतो वैताढ्य नामे श्रेष्ठ गिरि छे. उभय श्रेणीरूप कुंभस्थळ ने शिखररूपी दांतधारण करतो, वहेता झरणाना जळरूपी मदवाळो ते जाणे के दीर्घदन्तुशळवाळो दिशागज न होय !'
आताढ्यनुं वर्णन छे. तो मलयगिरिनुं वर्णन जुदी ज छटा धरावे छे.
चोथा संधिमा (४.९) समुद्रनुं सरस वर्णन छे, तो पांचमा संधिमनुं सरोवर - वर्णन (५.१५) जुदुं ज कल्पना - चित्र खडुं करे छे
'थोडे दूर तेणे धरतीपर जाणे के मानस सरोवर उतर्यु होय तेवुं सरोवर जोयुं. जेना तीरे कुरर, क्रौंच कलहंसादि पक्षीओथी गुंजता अनेक वृक्षझुंड हतां जेनुं पाणी श्वेत, निर्मळ अने शीतळ हतुं जेने सिद्धो, यक्षो अने देवोना युगलो भोगवतां हतां. विकसमान शतपत्ररूपी वदनवाळो, नीलकमलरूपी लोल नयनवाळो, उज्जवळ कुमुदखंडरूपी हास्यवाळो, घन परागकेसररूपी विलासवाळो, पवनथी चलित मोजारूपी बाहुवाळो, हंसना शब्दोरूपी नूपुरशब्दोवाळ, चक्रवाकयुगलरूपी पयोधरवाळो, राता कमळरूनी अधरवाळो, भ्रमरगुंजारव रूपी गीतवाळो नारीसमूह जाणे के एकठो थयो होय ( ते सरोवर हतुं ) '.
प्रकृति-चित्रणनी साथे साथे ज कविए मानव स्वभाव अने मानव प्रवृत्तिओनां पण सुंदर चित्रो आलेख्यां छे. बीजी संधिमांनु स्त्री-स्वभावनुं वर्णन (२०१९) अने विलासवतीना अनंगरतिए करेला अपहरण छतां सनत्कुमार पहेलां दूत मोकलवानी सलाह स्वीकारे छे, त्यारे तेना युद्धोत्सुक सुभटोना प्रत्याघातनुं वर्णन ( ७.१२) - बन्ने वर्णनो कविनी मानव-स्वभावनी जाणकारीना द्योतक छे. मदनमंजरीना विलापमा (४.५ ) पण विशिष्टता छे. युद्धभेरी वागतां नगरजनो अने सैनिको मां पडता प्रत्याघातोनुं वर्णन ( ८.३ ) तादृश छे. युद्धनां वर्णनो पारम्परिक होवा छतां कविनी विशिष्टता घणी जगाए जगाई आवे छे. युद्ध-वर्णन एक करतां वधारे वार आवे छे. (२.११, ७.२६ - २९, ८. ११, १३, १६, १७, २१, २२ वगेरे ).
सनत्कुमार ने अनंगरतिना द्वंद्वनुं वर्णन कवि करे छे
'चमकती तरवारो हाथमा लईने बाणधारी वेउ रणमां उत. वेय बलवंता, वेय शूर, जाणे तेजस्वी चंद्र ने सूर्य बन्ने एवा भिडाया जाणे के देवदानव, बन्ने एवा धीर के जाणे सिंह. जाणे वेड गुरुकाय पर्वतो, पत्रनथी टकरायला जाणे वे मेत्र. बेय जाणे मत्त वनहाथी,
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