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प्रस्तावना
काव्यसाधना लांबा काळनी होवानुं कल्पी शकाय छे. आथी 'विलासवती ने एमनी प्रौढवयनी रचना मानवानुं प्राप्त थाय छे। अने तो कविनो जीवन- काळ ईस्वीसननी अगियारमी सदोनो पूर्वभाग - प्रथम के द्वितीय दशकथो मांडी आठमा नवमा दशक सुधीमां — आंकी शकाय. कविए पोते अनेक स्तोत्रो रच्यानो निर्देश कर्यो छे, पण तेमनुं एक मात्र स्तोत्र अत्यारे उपलब्ध छे. ते प्राकृत भाषाबद्ध 'सकलतीर्थस्तोत्र' नामक ३६ गाथानी लघु कृति छे.' तेनी एक प्राचीन ताडपत्रीय प्रति पाटणना संघवी पाडाना ग्रंथसंग्रहमां छे. अने ला. द. विद्यामंदिर, अमदावाद खाते बे कागळनी प्रतिओ मळी आवी छे. आ कृतिमां कविना समयना अने पूर्व परंपरा अनुसार प्रसिद्ध एवा जैन तीर्थोनी वंदना करवामां आवी छे. ऐतिहासिक दृष्टिए जोतां मां केटोक मूल्यवान सामग्रो मळे छे. एनी अंतिम गाथाओ आ प्रमाणे छे -
कित्तिम अकित्तिमा वि य तित्थयरा वंदिया मए सव्वे । जिण भवण - सन्निविद्या साहारण भत्ति-राएण ।। ३५ ।। मरहम मणुअ - विहिया मोहारि - दुष्प - माहप्पा | सिरि-सिद्धसेणसूरिहिं संयुया सिव-सुह दिंतु ||३६||
कविनी बीजी एक कृति 'एकविंशतिस्थान- प्रकरण' प्रकाशित थयेली मळी आवे छे. जे प्राकृत भाषामा छे अने जेमां चावीसे तीर्थंकरोना च्यवन, जन्म, जनक- जननी इत्यादि एकवीश स्थान- विगतो ६६ गाथाओमां आपवामां आवेल छे. तेनी अंतिम गाथा नीचे प्रमाणे छे - इय इक्कवीस ठाणा उद्धरिय सिद्धसेणसूरिहिं ।
चवीस- जिणवराणं असेस - साहारणा भगिया || ६६ ||
बन्ने कृतिओना अंते आवता 'साहारण' शब्द उपरथी आ कृतिओना कर्ता सिद्धसेनसूरि ते प्रस्तुत 'साधारण' कवि ज छे तेम खात्रीथी कही शकाय . 'विलासवई कहा 'ना प्रत्येक संधिना अंते कविए श्लेष द्वारा पोतानुं नाम सूचयुं छे. ते हकोकत उपरोक्त विधानने पुष्ट करे छे.
३. कथा - सार
संधि- १
कथाना प्रारंभमां काव्यरूपी हारनी प्रशंशा करीने मंगळमां कवि चोवीस तीर्थंकरोनी दरेकना नाम दईने स्तुति करे छे. पछी सिद्ध, आवार्य, उपाध्याय अने साधुओने प्रणाम करीने श्रुतदेवी सरस्वतीनुं स्मरण करे छे. ( १ )
पछी श्रोता- पाठकोने संबोधी परदोपदर्शन, परजनपीडा अने प्रमादना कडवा फळ विशे दृष्टांतरूपे विलासवतोनी कथा ध्यानपूर्वक सांभळवा कही कथा शरू करे छे. (२)
आ भारतवर्षमां श्वेताम्बी नामे सुंदर नगरी हती ज्यां यशोवर्मा नामे राजा शासन करतो हतो. तेने कीर्तिमती नामे गुणवंतो पटराणी हती. तेनी कुक्षिए रूपगुणमां उत्तम एवो १. ला. द. विद्यामंदिर, अमदावाद तरफथी प्रकाशित थनार 'चैत्य परिपाटि - संग्रह 'मां
में संपादित करेल आ स्तोत्रनो समावेश करायो छे.
2. Descriptive Catalogue of Mss. in the Jain Bhandars at Pattan Ed. by L. A. Gandhi. pt. PP. 155-56.
३. एकविंशतिस्थानप्रकरण - संपा० मुनि देवविजयजी, प्रकाशक - शेठ खीमचंद फूलचंद, सीनोर, ई० स० १९२४.
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