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________________ साहारणकहविाइया [२.६५ तो भणिउ तेण अवहाणु देवि निमुणह कुमार थिरु मणु करेवि । तुह पिउहु रज्जे सुरपुरि-विसेसु सत्थिमइ नाम वर-सन्निवेसु । तहिं आसि पणइ-जण कामधेणु कुलउत्तउ नामेण वीरसेणु । सो दाण-वसणि अहिमाण-वित्तु सूरउ दयालु य गंभीर चित्तु । पडिवन्न-वयण-पालण-पहाणु किं बहुणा सुपुरिस-गुण-निहाणु । १० सरिसस्स तस्स कप्पमेण निच्चं परत्थ-संपायणेण । मणुयत्तणु-सफलु-करंतयस्स गउ को वि कालु सुह-पत्तयस्स । आवन्न-सत्त पिय-परिणि हुय अह अन्न-कालि तमु सुंदरह । सा लेवि महंतें चडयरेण चल्लिउ तीए वि कुलहरह ॥५॥ [६] सो चल्लिउ जयत्थल-पुर-वरम्मि पत्तउ सेयविया-बाहिरम्मि । आवासिउ तत्थ विहाणएण एत्थंतरि पत्तउ तर्हि खणेण । सुमहंत-सास-परिपुण्ण-वयणु भय-कायर-तरल-चलंत-नयणु । परिखीण-गमणु वियलंत केसु कंठ-गय-विलंबिय-जीय-सेसु । ५ सव्वंग-गलंत-महंत-सेउ कोइ वि कुल-उत्तउ तुरिय-वेउ । भणियं च तेण पर-कज्ज-सज्ज परितायहि परितायाहि अज्ज । पडिवन्नउं मई अज्जस्स सरणु ता रक्खहि महु संपत्तु सरणु । जपिउ एरिसु कुल-उत्तएण मा भाहिसि भद्द भलं भएण । को मह पाणेसु धरंतएमु अक्कु वि उप्पाडइ तुज्झ केसु । १० मा मन्नहि इय घरिणीए वुत्तु आइउ करेवि किंचि वि अजुत्तु । तो घरिणि वीरसेणिं भणिय सुंदरि जइ न दोसु करइ । ता पुरिसु समत्थठ माणुसह अन्नह सरणु किं पइसरइ ॥६॥ ता सुंदरि किमिह वियप्पिएण पडिवन्नउं मई सरणत्तणेण । जो भावइ सो च्चिय एहु होउ पडिवन-सूरु सप्पुरिस-लोउ । भणियउ सो भद्दय उवविसाहि सो भणइ अज्जु महु सोक्खु नाहिं । [५] ९. ला०-पालणु १२. पु० अन्नकाले १३. पु० महंति. [६] ४. ला० गमण ९. ला० उप्पाडेइ ११. ला० घरणि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001874
Book TitleVilasvaikaha
Original Sutra AuthorSadharan
AuthorR M Shah
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1977
Total Pages310
LanguagePrakrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size17 MB
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