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________________ साहारणकविरइया [१. ११जं अज्जु कुमरु विच्छाय-देहु तं निच्छउ मयण-वियारु एह । अह वित्तइ कीला-वइयम्मि गय दोणि वि माहवि मंडम्मि । वसुभूइ पभणिउं भो वयंस कहि पुहइ-नारि-कण्णावयंस । तुहुं अज्ज कोस विच्छाय-काउ जिह दिवस-मज्झि नक्खत्त राउ । १० पुणु खणे विनिवारिय-सयल-चेछु अच्छहि मुणि जिह झाणोवविदछु । खणे लद्ध-लाहु जूयारु जेंव परिओसु वहहि निय-चित्ति तेंव । तेण वि गोवंति मुहूं जोवंतिं पाण-पियस्स वि कहिउ पुणु । हउं किं पि न लक्खमि जं तुह अक्खमि जेण मयणु विवरीय-गुणु ॥१०॥ वसुभ्रूइ पणिउं तो हसेवि मा लक्खिउ वर जोइमु गणेवि । कुमरेण वि जंपिउ किं तयं ति अहि वयंस जं लक्खियं ति । ते जंपिउं नरवइ-बालियाए मिसु लेविणु बउलह मालियाए । आरोविउ गरुयउ चिंत-भारु तं तुह सरीरे एरिसु वियारु । ५ दिदिच्छलेण विद्धो य तीए तुहुँ मित्त मयण-सर-धोरणीए । तरलेहि व मुद्ध-विसालएहिं तुहुं मुट्ठ नयण-कुसुमालएहि । अन्नह अयंडे किर कवणु कज्जु परिपंडुरु दीसइ वयणु अज्जु । अन्नु वि अलद्ध-निदा-सुहाई आयंबई तारई लोयणाई । तह दीह दोह नीसास-पंति अच्चंत दुक्खु हिययह कहति । १० कीला वि सन सुन्नउ करेहि बत्तासु सुन्नु हुंकारु देहि । ता मा संतप्पहि किं पि मित्त तुह उवरि सा वि अणुरत्त-चित्त । बहुमाणे सरिसिय दुईय पेसिय बउल-माल में तुह उवरि । तेण य तुह संगमु तिहुयण-उत्तमु इच्छइ सा वि म सोउ करि ॥११॥ [१२] अन्नु वि अवस्स-भवियव्वएमु अवहिउ विहि सव्व-पओयणेसु । चिंतइ कज्जाइं अणागयाई अहिमुह दूरह वि घडइ पियाई । [१०] ६. ला० कुमर ११. पु० नियचित्ते १३. ला० तुहु [११] ५. ला० तुह मित्त नयण - ६. ला० मुछ नयण सुकुमालएहिं ७. ला० परियंडुरु १०. पु० सुन्न हुंकार ११. पु० तुहु १२. ला बहुमाणि, दूइ पेसिय पु० जि तुह १३. पु० मं सोउ [१२] १. ला• अवस्सु २. ला० महिमुहु Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001874
Book TitleVilasvaikaha
Original Sutra AuthorSadharan
AuthorR M Shah
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1977
Total Pages310
LanguagePrakrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size17 MB
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