SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 82
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १. ९-] सुधा य खित्ता सहत्थेण गुत्था चलंतस्स वायायणासन्न - हेट्ठ पलोएइ जा उप्परं ताव दि पुणो तस्स अइवल्लहो एग-चित्तो १० अणेणावि सो लक्खिओ ताग भावो विलासवई कहा पुणु तच्छंतिहि वियसिय-नेत्तिहि बउल- माल कंठर्हि निसिय । तें तासु पसाएं हरिस-विसाएं रायकन्न खलु नीससि ||८|| [s] अह सो पर वोलिउ कमेण पाविय अनंगनंदण-वणम्मि मिह उवरोहें बहु विचित्तु तं वयण कमल तीय वि सुतारु ५ बिबाहर - कंतिय- विष्फुरंतु वियसाविय - लोयण-दल-विसालु तो उचिय-काले नयरिहिं पविठु वासरु वि जांव बोलिउ कमेण तो दुक्ख सिरु इय भाणिऊण १० गउ वास - भवणि मणहरि विचित्ति एत्यंतरि आगय ते वयंस उवणीयई तो पवरासणाई पच्छा भवणुज्जाणह समित्तु नाणा - कीलाहिं य बहु-पयारु ५ कीलंतर चित्तें सुन्नएण तारायणु फुट्टउ कमल विसट्टउ सेज्जहिं वेल्लंce विरह - पत्तिह वरिस - सरिस वोलिय रयणि । तरणि तेउ पसरिउ गर्याणि ॥ ९ ॥ [9] ११. पु० सेज्जह विल्लंतह [१०] ४. कुमारस्स बउलाण माला पसत्था । पहुत्ता कुमारस्स सा झत्ति कंठे । मुहं रायकन्नाए अच्चंत - इटुं । सयासम्मि वसुभूः नामेण मित्तो । कुमारस्स जाओ महंतोऽणुराओ । [८] १० पु० भाओ १२. ला० तें तासु पसाई हरिसविसाइ [९] ३. पु० मित्तहं, ला० पु० कह विचित्तु ७ ला "इल क पु० णागाकीलाहिं, ला अवहरिउ Jain Education International कारण विकेवल न य मणेण । आढत्त मणोहर कील तम्मि | कील कुमारु अवहरिय-चित्तु । वायायण-सर-नोसरिउ सारु । सिय-दसण - किरण - केसर धरंतु । अच्छिउ चिंतंत को वि कालु । किउ दियस - कज्जु सयलु वि विसिठु । संपत्त रत्ति पूरिय तमेण । पेसिय वयंस संमाणिऊण । परिसंठिउ सयणि महामर्हति । पणमंति कुमारह कय-पसंस । तंबोलई सयलहं दावियाई । चल्लिउ कुमारु कीला - निमित्तु । अवहरिय-चित्तु कीलइ कुमारु । लक्खि वसुभूइ-वयंसएण | For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001874
Book TitleVilasvaikaha
Original Sutra AuthorSadharan
AuthorR M Shah
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1977
Total Pages310
LanguagePrakrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy