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विलासवई-कहा आ सिवाय दरेक संधिना अंतिम कडवकना पत्तामा कविए पोतार्नु नोम 'साहारण' श्लेषमां मूकेलं छे. अगियारमी संधिना बत्रीसमा कडवकमां आपेली वीतरागस्तुतिना अंते पण 'सिद्धसूरीहिं' अने 'साहारणा' बन्ने शब्दो श्लेषथी कवितुं नाम सूचवे छे. इलेषनो कविने आम शोख लागे छे. . अर्थालंकारोमां कविने उपमा अने उत्प्रेक्षा अधिक प्रिय छे. बन्नेना अनेक उदाहरणो मळे छे. ए उपरांत रूपकनो पण उपयोग अनेक वखत थयेल छे. सिवाय दृष्टांत, विरोधाभास अने स्वभावोक्तिना निदर्शनो मळे छे. उपमा-१.७.६; १.१०; १.२६; २.७; ८.२०:८.२२ इत्यादि उत्प्रेक्षा-१.६; १.७, ४.२, ५.२८, ८.१६ वगेरे ४.२ मां वैताड्यना वर्णनमा उत्प्रेक्षा साथे श्लेष पण छे. रूपक -१.९.४, ९.२७.१६ व. नवमी संधिमांनु भवसागरनुं रूपक (९.४-६) मालारूपकनु उत्तम उदाहरण छे.
____ अने मधुबिन्दुनु कथानक (११.७-१२) तो एक सर्वागसंपूर्ण धार्मिक रूपक छे जेर्नु विवेचन कथानकोनी परम्पराना प्रकरणमां करवामां आव्युं छे. दृष्टांत-१.१४; ६.४, विरोधाभास -२.२३ व्यतिरेक-८.३१ स्वभावोक्ति-४.१.६-१० आ रीते संस्कृत-प्राकृत महाकाव्योनी परंपरानु अनुसरण करवामां आव्युं छे, तदुपरांत अपभ्रंशना प्राचीन काव्योमां जणाती घणी काव्य-रूढिओर्नु पण विलासवई-कहामां पालन करवामां आव्युं छे. युद्धना वर्णनो, भोजन समारंभर्नु वर्णन, विविध आयुधोनु वर्णन, वाजिंत्रोनु वर्णन, ध्वन्यात्मक शब्दोना प्रयोगो, प्रहेलिका-ऊखाणा-आ बधा तेना उदाहरणो छे.
__ जैन कविओनु लक्ष्य जनसाधारणना हृदयतल सुधो पहोंची तेने दुराचरणथी विमुख करी सदाचरण तरफ प्रवृत्त करवानु हतु . विलास बई-कारनु पण ए ज लक्ष्य हतुं, ए पहेलां कहेवाई गयु छे. आथी कथानी साथे साथे ज कवि वारंवार उपदेशवाणीमां सरी पडे छे. एनाथी काव्यना प्रवाहमा शिथिलता आवे छे अने कदिक रस-अति पण थाय छे. परंतु उपदेशप्रधान काव्यमा ए अनिवार्य छे.
एकंदर विलासवई-कहा शृंगार अने वीररसथी परिपोषित शांतरस-प्रधान, अनेकविध अलंकारोथी सुशोभित,वर्णनोथी समृद्ध, लोकरंजन साथे उपदेश करवामां सफल महाकाव्य तरीके अपभ्रंश साहित्यमा आगq स्थान धरावी शके तेवी कृति छे.
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