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६. कथानकोनी पूर्व - परंपरा
विलासवई - कहानुं मुख्य कथा - कलेवर अगाउ जोयुं तेम समराइच्च - कहा उपरथी घडायुं छे. पण साधारण कविनी दृष्टि समक्ष समराइच्च्च - कहा उपरांत विविध बोधकथाओथी सभर टीकाओ साधेनुं विशाळ जैन आगम साहित्य, समराइच्च - कहानाये स्रोत जेवी वसुदेवहिंडी', रामायण अने भारतनी जैन परंपराए विकसावेली कथाओनी संस्कृत, प्राकृत अने अपभ्रंशमां रचायेली कृतिओ, कालिदास, बाण, दंडि, हर्ष आदि संस्कृतना महाकविओनी कृतिओ, प्राकृत अने अपभ्रंशनुं साहित्य तथा तत्कालीन लोक-साहित्य जरूर होवुं जोईए. आ बधी सामग्रीनी एक या बीजा स्वरूपनी असर विलासवई - कहा मां अत्रतत्र स्पष्ट जोवा मळे छे.
समृद्ध भारतीय कथा - साहित्यमां प्रचलित एवा केटलाक कथानको अने कथारूढ़िओ विलासवई-कहामां सुंदर रीते गूंथायेला जोवा मळे छे. आवा कथानकोनी पूर्व-परंपरानो अभ्यास रसप्रद छे.
( १ ) ईशानचंद्र राजाए जेने पुत्रवत् राख्यो छे एवा सनत्कुमार प्रति अनंगवती राणीने आसक्ति प्रगटे छे, पण विनवणी करवा छतां सनत्कुमार अघटित कार्य करवाथी दूर रहे छे. त्यारे छंछेडायेली राणी स्त्रीचरित्र करी राजा पासे कुमारना दुष्टपणानी खोटी फरियाद करी तेने मारी नखाववानी कोशीष करे छे. आ घटना द्वारा ज सनत्कुमार अने विलासवतीना वियोगनो प्रारंभ थाय छे. आम कथाने संघर्षना चरमबिंदुए लई जई नाट्यात्मक वळांक आपवानुं कार्य आचारूप घटना करे छे. आ जातनुं - स्त्री तरफथी अनुचित प्रेम - प्रस्ताव अने पुरुषनो अस्वीकार – कथानक भारतीय साहित्यमां घणुं जूनुं छे २
ऋग्वेदना यम यमी संवादमां आ कथानकना अति प्राचीन स्वरूपनी झांखी थाय छे. यम-यमी जोडिया भाई बहेन छे. यमी यम पासे अघटित प्रेम प्रस्ताव मूके छे. यम तेणीने धर्मविरुद्ध आचरणथी दूर रहेवा समजावे छे. उ
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ऋग्वेदमां ज आवुं बीजुं कथानक इन्द्राणी - वृषाकपि विषेनुं छे. पोताना प्रेम प्रस्तावने वृषाकपिए ठुकराववाथी कुद्ध इन्द्राणी इन्द्रगसे वृषाकपे विरुद्ध फरियाद करे छे. *
महाभारतमां आरण्यक - पर्वमा आवतुं उर्वशी अने अर्जुननुं आख्यान पण आ ज कथा - न धरावे छे. अर्जुन प्रत्ये आकर्षायेली उर्वशी तेनी समीपे भोग माटे प्रार्थना करवा जाय छे. पुरुवरानी उत्पन्नकर्त्ता जननी गणी अर्जुन तेनी प्रार्थनानो सादर अस्वीकार करे छे. मानभंग थली क्रुद्ध उर्वशी तेने शापे छे. ५
१ गुणाढ्यनी अद्यापि अनुपलब्ध पैशाची भाषाबद्ध बृहत्कथाना प्राचीनतम प्राकृत रूपान्तर तरीके आधुनिक साक्षरो द्वारा ओळखाती अने मोडामां मोडी विक्रमनी छडी शताब्दीमां रचायेली मनाती, संघदास गणिनी रचना वसुदेवहिंडी, हरिभद्रसूरिनी समराइच्च - कहाना मुख्य कथानकनुं उद्गम स्थान छे. जुओ- हरिभद्र के प्राकृत कथा साहित्यका आलोचनात्मक परिचय, पृ० १८८
२. आ कथानकना घर्णा दृष्टांतो डॉ० हिरालालजी जैने नोंध्यां छे. (सुदंसण - चरिउ, प्रस्ता चना पृ० १७ ) में तेमां केटाको उमेरो करी ते बधां अहीं ट्रंकमां नोध्यां छे.
३. ऋग्वेद १०.११ ४. ऋग्वेद १०.८६
महाभारत आरण्यक पर्व भा० २. परिशिष्ट - ६, पृ० १०४७-५३०
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