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________________ ३. २१ ] विलासवईकहा एत्थतरि अवलोइय पिट्ठउ जाव न कोइ सत्तु तहिं दिट्ठउ । तो पच्छा पच्छिय मेल्लेविणु परिहिउ वक्कलु उकेल्लेविणु । केस-कलाउ तीए परिमुट्ठउ पयडिउ अंगहं भंगु विसिट्ठउ । १० बाहु-लयाउ दो वि उव्वेल्लिय विहिउ वियंभणु सास पमेल्लिय । तं पेच्छेविणु कुमरु चिंतए हंत किमेरिसु केण कारणेण । अहवा किं मज्झ एइणा इह-पर-लोय-विरुद्ध-चिंतिएण ॥२०॥ इय चिंतेवि गिरि-नइ जाएविणु पाण-वित्ति किय फल गिण्हेविणु । तो बहु काणणेसु हिडंतह कुमरह माणुसु न य पेच्छंतह । सयल वि वासरु समइक्कंतउ पुव्व-विहाणि चेव पसुत्तउ । रयणिहिं जाममेत्तु जा अच्छइ ता कुमारु सुमिणतरु पेच्छइ । ५ किर कंचण-तरु-मुलि निविट्ठह का एवि दिवित्थिय एमु तुट्ठह । ढोविय सब्बिंदियह मणोहर कुसुम-माल अमोइय-महुयर । भणइ कुमार तुम्हें कुसुमप्पिय ता मई कुसुमहं माल समप्पिय । तुह निमित्तु पुत्वं पि वियप्पिय ता गिण्हह कुमार अवियप्पिय । सा गिण्हवि किर सहरिसु पाविय कुमरि कंठ-देसि आरोविय । १० एत्तहि सारस-रवु वित्थरियउ कुमरु विउद्धउ विम्हय-भरियउ । परितुदृउ कुमरु चिंतए आसन्न-फलु एस सुमिणउ । कन्ना-लाहं च सूयए जेण इयाणि चेव उवनउ ॥२१॥ [२२] अहव अरण्णु एउ किह होसइ को मह रण्णे वि कन्न दइस्सइ । __इय चितंतह सुमिण-पओयणु दाहिणु बाहु फुरिउ तह लोयणु । [२०] ७. पु० एत्थतरे अवलोइउ ८. पु०पच्छिया ....उक्खिलेविण १० पु. बाहुलयाओ ११ ला० पेच्छेवि, पु० किमेरिस वियाम कारणेण १२.पु. चिंतिएणं [२१] १. पु. गेण्हेविणु ३. ला सयलो वि वायरु, पु पुव-विहाणे ५. ला० मूले ६. ला० ढोइय ८. पु० गेण्हह ९. पु. गेण्हेवि... कंठदेसि लंबाविय १०. पु० एत्तहे ११. पु० सुमिणओ १२. पु० उवणओ [२२] २. ला० चितिंतह Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001874
Book TitleVilasvaikaha
Original Sutra AuthorSadharan
AuthorR M Shah
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1977
Total Pages310
LanguagePrakrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size17 MB
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