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________________ साहारणकइविरइया [३. २३ तो कुमरु चिंतइ मणे एरिसु रिसिहि न वयणु होइ अन्नारिमु । सउण सत्थु अणुकूलउ दीसइ रण्णे वि कन्नय-लाभु पयासइ । ५ पर जा सुंदरि भुयण-असेसहं रायहाणि जा सयल-विलासहं । सा य विलासवई वज्जेविणु अन्नहिं कन्नहिं न रमइ महु मणु । सुमिणय-देवयाए पुणु वुत्तिय तुज्झ निमित्तु पुव्व-निव्वत्तिय । अन्नए सरिसु न पुयहि परिचउ ता स च्चिय पावेवि य निच्छउ । जा मई तावसि कल्लि निरिक्खिय सा य विलासवइहिं सारिक्खिय । १० जेण य विहि-परिणाम अचिंतिय कह वि हु सा वि होज्ज संपत्तिय । अन्नह कह सा तावसि दीसइ किह वा मयण-वियारु पयासइ । अहवा जइ सा वि होसइ तहे लाहो वि हु तो अलद्धउ । पडिवन्न-वयाए संजुओ विसय-पसंगु हवे विरुद्धउ ॥२२॥ [२३] अहवा दंसण-सुहु पावंतह पिययम-गहिय-मग्ग-वच्चंतह । वय-गहणं पि हु मज्झु पहाणउं इय चिंतंतह झत्ति विहाणउं । नहयलि अंसुमालि उग्गमियउ नछु तिमिरु गिरि-गुह-संकमियउ । रयणि-विओय-महा-दुह-पडियई चक्कवाय-मिहुणाई वि घडियइं । ५ तो रम्मत्तणेण वण-भायह उक्कडयत्तणेण अणुरायह । लोहवणीययाए तह सुमिणह आस-परत्तणेण तहे ठाणह । तावसि-अन्नेसणह पयत्तउ काम-जरेण कुमरु संपत्तउ । न य सा तावसि कत्थ वि दिहिय वासरु रयणि तहेव य निट्ठिय । तो कुरंगु जिह वग्गह भट्ठउ वण-गइंदु जिह जूह-पणट्ठउ । १० तम्मि चेव काणणि हिंडंतउ कुमरु महंत दुक्ख संपत्तउ । इय तत्थ महंत-काणणि कुमरह कइय वि दिवस वोलिया। न य कत्थ वि सा पलोइया मण-साहारण-सार-मूलिया ॥२३॥ इइ विलासवई-कहाए भिन्न-वहण संधी तइया समत्ता ॥ [२२] १. ला० लाहु ५. पु० परि, ला० भवणि ७. ला० तुज्झु ८. ला० परिच्चउ १२. ला० ताह लाहो वि हु तो..., पु० तहे लाहो वि अलद्धद. १३. ला० तवे विरुद्ध [२३] २. पु० मज्झ ३. ला नहयले...ओग्गमियउ ६. ला० आयरत्तणेण, पु० तहि ७. ला. अन्नेसणहं १०. ला० काणणे. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001874
Book TitleVilasvaikaha
Original Sutra AuthorSadharan
AuthorR M Shah
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1977
Total Pages310
LanguagePrakrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size17 MB
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