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विलासवई-कहा किनारे आदी कुमारे आश्चर्य साथे जोयु तो पेलुं वस्त्र पाणीथो भीजान हतुं. कुमार ने ते जोई विधिनी लीलानु स्मरण थयु. वसुभूतिनी याद आवतां तेने मित्र विना जीवद्यु दुष्कर लाग्यु. (१३) मित्र विना जीवन निष्प्रयोजन होई तेने आत्महत्या करवानी इच्छा थई, पण तेने ए विचार आव्यो के कदाच वसुभूतिने पण पोतानी जेम कोई पाटियु मळी जवाथी ते पण जीवतो होई शके. आथी पोते निराश न थतां जीवयु जोईए. आम विचारी ते फळाहार बगेरेनी शोधमां नीकळयो . (१४) .., एक रमणीय वन (वर्णन) मां एक नदीतीरे तेणे फलादिकनुं भोजन कयु. त्यां एक आम्रवृक्षनीचे तेणे प्रियानु मनरंजन करता सारसने जोयो अने तेने पोतानी प्रिया विलासक्तीनु स्मरण थयु. (१५) मनुष्यो करतां वननां पशु-पक्षीओ केटलां मुखो छे एनो विचार करतां सांज पडीगई अने थाकेलो कुमार निद्राधीन थयो. (१६) - प्रभाते जागी पुनः ते वनमां फरवा नीकळयो. त्यां किगारानी सुंदर रेतीमां कोईनी नाजुक पदपक्तिओ पडेली जोईने एटलामां कोई स्त्रीनी हाजरी होवानु तेणे अनुमान कयु'. (१७) तेवामां थोडे दूर डाबा हाथे फूलछाबडी लईने जमणा हाथे फूलो चूंटती कोई सुकुमार तापसकन्या (वर्णन) तेणे जोई. अरण्यमां आवी सुंदरता जोई आश्चर्य अनुभवता कुमारे वृक्ष पाछळ छूपाईने तेनु निरीक्षण कर्यु. (१८)
___ मात्र वल्कल सिवाय ते तापसी अने विलासवतीमां कोई भेद नथी ए जोई कुमारना शरीरमा कामाग्नि प्रजळी उठयो. छाबडी भरीने जेवो तापसी नजोकथी नीकळी के कुमार पण विकारने दबावी तेनी सन्मुख जई ऊभो. प्रणिपात करी, पोतानी वीतककथा कही पछी आ कयो प्रदेश छे तथा ते कया आश्रममा रहे छे वगेरे प्रश्नो कुमारे पूछया. कुमारने जोतां ज दिग्मूढ बनेली तापसी क्षणमात्र आंखो नीचे ढाळी ऊभी रही अने पछी कई पण जवाब
आप्या विना ज चालवा लागी. एकली तापसकन्याने पोते आ रीते पुछवु न होतु जोईतु एम विचारतो कुमार कुत्हलथी तेनी हिलचाल छुपाईने जोवा लाग्यो. कोईने आसपास न जोतां पोतार्नु वल्कलवस्त्र ठीकठाक करतां ते तापसकन्याए अंगभंग करी निश्वास मूक्यो. कुमारने तेनुं आ कार्य समजायु नहीं. पोतार्नु आ रीते जोवु अधर्म्य छे एम मानी अंते कुमार त्यांथी फरी पाछो नदीतीरे आव्यो. फलाहारथी तृप्त थई रात्रि थतां ज निद्राधीन थयो. निद्रामां तेणे कोई दिव्य स्त्रीए पोताने मनोहर पुष्पमाळा आपी अने पोते ते सहर्ष कंठमां धारण करी एवं स्वप्न जोयु. सारसना मधुर रवथी जागी जतां कुमारे विचार्यु के आ स्वप्न नजीकना भविष्यमा ज कन्यालाभ सूचवे छे. (१९-२१) कुमारने शंका थई के आ वनमां कन्या शी रीते मळे ? पण आगला दिवसे मळेली विलासवती जेवी ज तापसकन्यानी स्मृति तथा शुभसूचक इतर शुकनो द्वारा कुमारने स्वप्न फळवानी आशा बंधाई. विलासवतीए व्रत धारण कर्यु होय तो पोते पण व्रतग्रहण करशे एम विचारतो ते फरी ते तापसकन्यानी शोधमा प्रवृत्त थयो. अथाक अविरत प्रयत्न छतां तेने क्यांय तापसकन्यानो पत्तो न लाग्यो. (२२-२३) संधि-४ ३ते दरमियान एक आम्रवृक्षनीचे विलासवतीना विचारमा मग्न कुमार बेठो हतो त्यां एक मध्यम वयनी तापसी (वर्णन) त्यां आवी अने कुमारनुं नाम दई संबोधन कयु", पछी तेना मस्तके कमंडळना पाणीथी अभिषेक करी, मनोरथ पूर्ण थवानो आशीर्वाद आप्यो. (१)
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