SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 18
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रस्तावना सनत्कुमारने आखो वात जाणी स्त्रीओनी कुटिलता विशे मनोमन खूब उद्वेग थयो. पहेलां तो साची वात राजा समक्ष रजू करवानो तेने विचार थयो. पण तेम करवा जतां राणीनो घात थशे एम विचारी तथा पोताना कर्मनो ज आमां वांक छे एम गणो परोपकारी कुमारे विनयंधरने पोतानो ज वध करवा का. पण कुमारना निर्दोषपणाने जाणनार विनयधरे तेम न करतां राजा पासे राणीनी दुष्टता उघाडी पाडवा आग्रह कर्यो. अने पछी पोते पण राजाने सत्य हकीकत कहेवा जवा तैयार थयो. पण कुमारे तेने वार्यो. गुरुजनोने संताप करवो योग्य नथो माटे पोतानो ज वध करवा फरी फरी कुमारे आग्रह कर्यो. विनयंधरे अंते कोई मध्यम मार्ग काढवा कह्यु के जेनाथी साप मरे नहि अने लाठीये भांगे नहि. बुद्धिमान कुमारे पोते छूपी रीते नगर छोडी चाल्यो जाय अने विनयंधर राजा पासे एनी हत्या कर्यान जाहेर करे एवो वचलो मार्ग काढयो. पछी ते ज दिवसे समुद्रदत्त नामे सार्थवाहना सुवर्णभूमि तरफ जतां वहाणमां वसुभूति साथे सनत्कुमारने छूपो रीते बेसाडी विनयंधरे लागणीपूर्वक विदाई आपी. (१६-२३) संधि-३ वहाण आगळ वध्यु अने वसुभूतिए सनत्कुमारने आ रीते एकाएक चाली नीकळवार्नु कारण पूछयु. जवाबमां कुमारे अनंगवतीवाळो समग्र बनाव कह्यो. बे महिना पछी तेओ सुवर्णभूमि आवी पहोंच्या. (१-२) वहाणमांथी ऊतरी तेओ श्रीपुरनगर गया. त्यां वेपार माटे आवेल, श्वेताम्बीनो रहेवासी शेठ समृद्धदत्तनो पुत्र, मनोरथदत्त नामे बालमित्र कुमारने अचानक ज मळी गयो. तेणे खूब आग्रहपूर्वक बन्नेने पोताना निवासे रोकी राख्या. (३) कुमारे पोते पिताथी रिसाई घर छोड्यानी तथा हाल पोताना मामा सिंहलद्वीपना राजा पासे जई रह्यानी वात कही अने पोताना माटे सिंहलद्वीप जतां वहाणनो प्रबंध करी आपवा मनोरथदत्तने कह्यु. मित्रनो वियोग थशे ए बी के मनोरथदत्ते घणा दिवसो सुधी वहाणनो प्रबंध को नहीं. (४) अंते कुमारना कामनी अगत्य जाणीने तेणे कुमारने सिंहल जनारा वहाणनी खबर आपी. तेणे जेने ओढवाथी ओढनारने कोई जोई शके नहि एवु चमत्कारिक 'नयनमोहन' नामर्नु एक पटवस्त्र कुमारने भेट आप्यु. ते केवी रीते प्राप्त थयु एम कुमारे कुतूहलथी पूछतां मनोरथदत्ते पोताना सिद्धसेन नामना एक तान्त्रिक मित्रद्वारा विधिपूर्वक यक्षकन्यानी साधना करीने तेनी पासेथी केवी रीते 'नयनमोहन' पट मेळव्यो तेनी विगते वात करी. (५-९) कुमारे वस्त्र स्वीकार्यु. त्यारबाद मनोरथदत्ते पोताना जाणीता ईश्वरदत्त नामना सार्थवाहना वहाणमां बन्ने मित्रोने बेसाडी, सार्थवाहने तेमनी भलामण करी, सिंहलद्वीप जवा विदाय कर्या. (१०) तेरमा दिवसे समुद्रमां भयानक तोफान (वर्णन) आव्यु. कर्मसंजोगे वहाण भांगी गयु माणसो समुद्रमां डूबवा लाग्या. सदभाग्ये एक पाटियु कुमारना हाथमां आवी गपुं. त्रण दिवसे कुमारे किनारे जोयो. (११-१२) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001874
Book TitleVilasvaikaha
Original Sutra AuthorSadharan
AuthorR M Shah
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1977
Total Pages310
LanguagePrakrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy