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विलासवई-कहा "समराइच्च-कहाओ उद्धरिया सुद्ध-संधि-बंधेण । कोऊहलेण एसा..."
थीं प्रशस्ति अपूर्ण रहे छे. आ बन्ने प्रतिओमा एमना लिपिकार अने लेखन-स्थळ के समय विशे कोई उल्लेख नथी. स्व. पू. आगमप्रभाकरश्रीए बन्नेनो लेखनसमय चौदमी शताब्दी होवानुं अनुमान करेलु. प्रतोनी लाक्षणिकताओ
प्राचीन हस्तलिखित प्रतोमां लहियाओनी असावधानी अने अज्ञानना कारणे जे भूलो होय छे ते अहीं-बन्ने प्रतोमां पण देखा दे छे. बन्ने प्रतोनी लाक्षणिकताओ नीचे दर्शावी छे. (१) म-स, च्छ-स्थ, त्थु-छु, दृ-दू, ए-प, वच, य-प, उ-ओ अक्षरो वच्चेनो भेद न सम
जवाने कारणे लहियाओए एकनी जग्याए बीजो अक्षर लखी नाखेल छे. (२) पडिमात्रा समजवामां पण घणीवार लहियाओए भूलथाप खाधी छे. (३) सादृश्यने कारणे 'ईसाणचंदु' नु' ईसाणुचंदु ' अने 'वरिस-सरिस'- 'विरिस सरिस' जेवी
भूलो जोवा मळे छे. (४) सामान्यतः बन्ने प्रतोमां परसवर्णना स्थाने अनुस्वार आवे छे, परन्तु केटलीकवार 'न्त'
(किरन्ति, कन्ति जेवा रूपोमां) जोवा मळे छे. (५) निरर्थक अनुस्वार पण घणी जगाए नजरे पडे छे; ते ज रोते अनुस्वार छूटी गयाना पण
घणां उदाहरणो छे. (६) 'य' श्रुतिनी बाबतमा बन्ने प्रतिओमां एकवाक्यता नथी. पु० प्रतिमा 'य' श्रुति विशेषताथी छे. (७) बन्ने प्रतिओमां आदि 'न' अने मध्यवर्ती संयुक्त 'न्न' सुरक्षित छे, जो के पु० प्रतिमां
तेवा केटलाक स्थानोमां 'ण-ण्ण' छे. (८) धम्म, कम्म इत्यादि धम, कम लखायेला छे. (९) आदि 'भ' नो पण केटलीक वार 'ह' करवामां आव्यो छे. (१०) प्रथमा एकवचननो 'उ' प्रत्यय अनेक स्थळे छे, परंतु क्यांक क्यांक 'अ'कारान्त रूप
पण जोवा मळे छे. (११) बन्ने प्रतिओमां एकंदर महत्त्वपूर्ण पाठभेद जज जोवा मळे छे. संपादन-पद्धति
संपादनमां में नीचे मुजबना नियमोनु पालन कयु छे(१) हस्तप्रतोने अनुसरी उद्वृत्त स्वरोना स्थाने 'य'-श्रुति राखी छे. (२) परसवर्णना स्थाने अनुस्वार मूकेल छे. (३) आदि 'न' हस्तप्रतोने अनुसरी सर्वत्र सुरक्षित राखेल छे. (४) स्वर-मध्यवर्ती असंयुक्त 'न' नो 'ण' करेल छे. (५) संयुक्त 'न' माटेनो निर्णय एना संस्कृत रूपने आधारे कर्यो छे. संस्कृतमा 'न' होय
तो 'न' अने 'ण' होय त्यां 'ण' राखेल छे. दा.त. 'मन्यते'='मन्नइ' पण 'कर्णधार'=
'कण्णधार'. (E) प्रतिओमा प्रायः 'ब'ना स्थाने 'व' ज मळे छे, अहीं मूळ संस्कृत रूप अनुसार यथा.
स्थान 'ब'-'व' मूक्या छे.
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