________________
७२
साहारणकइविरइया
[२२] इय चित्ति धरेविणु साहियउ हउं देवि पमाएं निवडियउ । तो पुन्न-भिन्न-फलहं लहिवी उत्तिण्णउ सायरु कह कहवी । गय का वि वेल तो भणइ पिया हउं अज्जउत्त निठुरु तिसिया ।
अह तं सुणेवि जंपइ कुमरु इह नाइदूरे सुमहंत-सरु । ५ ता एहि सिग्धु वच्चम्ह पिए जहिं दिव्व-सरोवरि देव-पिए । तं निमुणिवि चलिय विलासवई मय-मत्त-महंत-गइंद-गई। थोवंतरु भूमिहिं जाव गया सक्कइ न चलेवि तिसाभिहया । जं तीए नियंबो वि अइ-गरुओ जं चिय अपारु सायरु तरिभो ।
जं चिय सुकुमालउं तीए तणु जं चिय वीरत्थउं हुयउं मणु । १० जं चिय सन्निहियउ कंतु तहि तं पाय वहंति न रीणियहि ।
तो वुत्तिय कुमरेण जइ चल्लेवि न सकहि । इय नग्गोहह मूले तो देवि पडिक्खहि ॥२२॥
- [२३] हउं देवि जाव तं सर-सलिलु आणेमि भरेषिणु नलिणि-दल । सा भणइ न वाहइ तेंव तिसा तुह वयण-कमल-दंसण-सरिसा । सो भणइ देवि धीरिय हवही हउं एहु पत्तु मा भउ करही ।
तो विहिउ तेण पल्लव-सयणू ओढाविय पड्डु मोहिय-नयण । ५ भणिया य देवि तई एत्य वणे बहु-खुद्द-रोद्द-सावज्ज-घणे । पड-रयणावरिय-सरीरियए अच्छेवउं खणु वि सुधीरियए । तो जइ वि न चित्तह आवडइ पडिकूलु कया वि न सा करइ । पडिवन्नु कह वि चल्लिउ कुमरो तहिं पत्तु सरोवरि सिग्घयरो ।
बंधेवि विसालइ नलिणि-दले गहियउं जलु तह नारंगि-फले । १० तो पडिमग्गेण पहावियउ तर्हि वडह पएसि परावियउ । [२२] १. पु० चित्ते २. पु० फल लहवो ३. ला० निभा तिसिया ५. ला० तहि
दिव्व-सरोवरे १०. ला० तहे ...रोणियहे ११. ला० कुमरेणं....चलेवि १२. ला० इह [२३] ७. ला० से करइ ८. ला० सरोवरे ९. ला० नारंगफले १०. ला० पहावियओ....
परावियओ.
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org