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________________ ५.२७] विलासवईकहा १० उवरिं पुणु सा तसु हूय गई जा कह वि कहेवि न सक्कियई । जा अणुहविय न पुयहि मुह-दुह अविहाविय । मरण-सहोयरि नावइ सा मुच्छ पराविय ॥२७॥ ___ [२८] जा थेव वेल तिह अच्छियउ ता सुमिणइ जिह ति पेच्छियउ । कर-कलिय-कमंडलु-गहिय-जलो तावस-वेसेण पणढ-मलो । सिंचंतउ गत्तई को वि रिसी चेयण संपाविय तेण इसी । अह चिंतइ किह हउं धरणि-गओ किं मंद-भग्गु अज्ज वि न मओ । रिसिणा वि अंगु तह परिमुसिऊ कुमरेण भणित करुणा-रसिऊ । भयवं किं एरिसु पई विहिऊ तेणावि तस्स एरिसु कहिऊ । निसुणेहि वच्छ हउं एत्थ वणे कुस समिह-निमित्तु पहुत्तु घणे । दूरट्ठिएण ता दिद? तुमं इह आरूहंतु नग्गोह-दुमं । अप्पणु वावायण-उज्जयउ मइं वयण-वियारि लक्खियउ । १० तो चिंतिउ हा एहु कवणु नरो दीसइ मरणज्झवसायपरो । पासउ उड्डे वि सिरोहरहे वच्चइ सुपुरिस-निदियइ पहे । किं वा मरियव्वय-कारणयं इय पुच्छेवि करमि निवारणयं । चिंतंतु तुरिउ हउं चल्लियउ ताव य तई अप्पा मेल्लियउ । मा साहसु मा साहसु करही भो सुवुरिस अप्पा संवरही । १५ एरिसु भणंतु हउं धावियउ तो वडह पएसि परावियउ । एत्थंतरे सहस ति तुह तुट्टउ पासउ । नाइ निरालंबस्स जोगिहि कम्मासउ ॥२८॥ तो धरणिवट्ठि तुहुं निडियउ मई कंठ-पासु निच्छोडियउ । सित्तो सि कमंडलु-पाणियइं चेयण संपाविय कह वि तई । [२८] १. ला०तहिं अच्छि० .. जिह तं २ ला० कर-कमल-कमंडलु ५. पु० तहो ९. पु. वावायणु ...वियारे १३. पु० तुरियउ [२९] १. ला. धरणि-वठे, पु० तुहु, ला• उच्छोडियउ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001874
Book TitleVilasvaikaha
Original Sutra AuthorSadharan
AuthorR M Shah
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1977
Total Pages310
LanguagePrakrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size17 MB
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