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________________ ३१ आ २. २३] विलासवईकहा तेणावि पडिच्छिय सव्वहा वि एवं चिय वोलिय वेल का वि । कामिणि-कवोल-पंडुर-सरीरु उग्गउ ससि धवलिय-जलहि-नीरु । ५ संखुद्ध-सयल-जलयर-निनाय -बहिरिय-दिसि जलहिहि वेल आय । वसुभूइ-समन्निउ जाणवत्ति आरूढु तेत्थु जण-रवि पवत्ति । पाएहिं पडवि विणयंधरेण जंपिउ बाहोल्लिय-लोयणेण । खमियव्वउ मज्झ कुमार दोसु कायव्वु न अम्हहं उवरि रोसु । विहिणो वसेण तुम्हारिसेहिं किह लब्भइ संगमु सुपुरिसेहिं । १० वरि दुज्जण-संगम होज्ज लोइ विरहम्मि जस्स बहु सोक्खु होइ । मा होज्ज समागमु सज्जणस्त विरहेण दुक्खु बहु होइ जस्स । अम्हहं गुणु अत्थि न सव्वहा वि दोसेहिं वि सुमरिज्जसि कया वि । खेमेण य तहि निय-ठाणि पत्त पेसेज्जह नियय-सरीर-वत्त । इय जंपिवि पणमवि वाहुडिउ बाहप्पवाहोल्लिय-नयणु । १५ विणयंधरु कुमरु वि जइ नवि सक्कइ साहारणहं मणु ॥२३॥ इइ विलासवईकहाए विणयंधर-संधी दुइया समत्ता ॥ [२३] ६. ला० जाणवत्ते...पवत्ते, पु. तत्थ ७. ला. बाहुल्लिय १०. ला० वर....लोए.... सोक्ख ११. ला० होइ तस्स १२. ला० गुण Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001874
Book TitleVilasvaikaha
Original Sutra AuthorSadharan
AuthorR M Shah
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1977
Total Pages310
LanguagePrakrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size17 MB
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