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साहारणकाविरइया
[२. २२१० जिह तुज्झ सुरक्खिय होति पाण जिह मई वि न खंडिय होइ आण ।
जिह सप्पु न मरइ न लट्ठिया वि भज्जइ तिह चिंतहि बुद्धि कावि । चिंतइ न ताव मई एहु वहेइ अवहंतउ अवराहिउ लहेइ । ता जइ नीसेसु परिच्चयामि वसुभूइ-सहिउ परदेसि जामि ।
एरिसु चिंतेविणु कहिउ तेण विणयंधरु तुट्ठउ निय-मणेण । १५ जंपइ एउ कुणह महा-पसाउ को अन्नु मुणइ एरिसु उवाउ ।
अन्नं च पयट्टउं इह वहणु तं सुवण्ण-भूमिहि उवरि । अज्जेव य रयणिहिं मुच्चिस्सइ तेण सरिसु तुहुँ गमणु करि ॥२१॥
[२२] ता अम्हि कुमारु अगुग्गहेउ तेण वि सहुँ चल्लउ सिग्घ-वेउ । कुमरेण वुत्तु जं तुहुं भणेहि ता मइं पुरिसोत्तम तेत्यु नेहि । एत्थंतरि तो अथमिउ सूरु तउ कुमरु पयट्टउ जाव दूरु। आरत्त संझ नहयलि विहाइ नरवइहि उवरि आरुट्ठ नाइ । सरवरि तामरसई मउलियाइं नं कुमर-विओइ करालियाई । मिहुणई चक्कायहं विहडियाइं नं कुमर-सरिसु सम-सुह-दुहाई । अंधारिउ नहयलु तक्खणेण नं चल्लिय कुमर-निरक्खणेण । वित्थरिउ संख-रवु देउले हिं नं कुमार-गमणि धाहविउ तेहिं ।
उच्छलिय कंति घर-दीवयाहं नं कुमरु जंतु जोवंतयाहं । १० विच्छाय नयरि हुय घण-तमेण नं चलिय-कुमर-उन्वेवएण ।
वमुभूइ-विणयंधर-सहियउ तामलित्तिपुरि-निग्गयउ । बहु-जाणवत्त-सय-संकुलइ अह वेलाउलि सो गयउ ॥२२॥
दिहउं अह सज्जिउ जाणवत्तु तहिं वहणह सामि समुद्ददत्तु ।
तो सबहुमाण विणयंधरेण ते तस्स समप्पिय सायरेण । [२१] १०. ला. हुति....म वि... ११. पु० तिहे [२१] १. ला० अम्हे २. ला पुरिसोत्तिम, पु० तत्थ ३. ला० तं कुम: ५. ला०
सरवरे ६. ला कुमरेसहिसु १०. ला० विच्छाइय ११. पु० विणयंधरसहिउ [२३] १. ला० सज्जिय २. पु० सबहुमाणु...सादरेण
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